Friday, 25 August 2023

नैना देवी मंदिर

 

 


 

 

 हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में शिवालिक पर्वत पर देवी सती की आंख गिरी थी। यहां माता देवी महिष मर्दिनी कही जाती हैं।  नयनों की अश्रुधार ने यहाँ पर ताल का रूप ले लिया। तबसे निरन्तर यहाँ पर शिवपत्नी नन्दा (पार्वती) की पूजा नैनादेवी के रूप में होती है। नैना देवी में एक बड़ा पीपल का पेड़ है, जहां पर्यटक आराम से वहां बैठ सकते हैं। पीपल के पेड़ के पार हनुमान जी की भी मूर्ती स्थापित है। अंदर के गर्भग्रह के भीतर तीन देवताओं की मूर्तियां हैं, केंद्र में दो आंखें हैं, जो नैना देवी का प्रतिनिधित्व करते हैं, बाईं ओर माता काली देवी और दाईं ओर भगवान गणेश हैं। मां नैना देवी का मुख्य मंदिर दो शेर की मूर्तियों से घिरा है। कुषाण काल में भी नैनी देवी मंदिर के बारे में लिखा हुआ है। 15वीं ईस्वी में निर्मित, नैना देवी मंदिर की मूर्ति एक भक्त मोती राम शाह द्वारा 1842 में स्थापित की गई थी। 1880 में भारी भूस्खलन के बाद, नैना देवी मंदिर पूरी तरह से नष्ट हो गया था। लेकिन स्थानीय लोगों की गहरी आस्था की वजह से 1883 में इस मंदिर का फिर से निर्माण किया गया

नंदा अष्टमी के दौरान, नैना देवी मंदिर में एक बड़े मेले का आयोजन किया जाता है, जहां भारी संख्या में भक्त दर्शन करने के लिए आते हैं। यह नंदा अष्टमी उत्सव नैना देवी मंदिर के बाहर 8 दिनों तक चलता है। मेले के अंतिम दिन देवी नंदा देवी की बहन नैनी देवी के साथ प्रतिमा विसर्जन का समारोह मनाया जाता है। अन्य पवित्र त्योहारों जैसे नवरात्रि, चैत्र मेला आदि में भी नैना देवी मंदिर में बड़ी संख्या में भक्त आते हैं

नैना देवी मंदिर में और उसके पास करने के लिए काफी चीजें हैं, जिसमें सबसे पहले नैनीताल झील में बोटिंग करना है। इसके अलावा आप भोटिया मार्केट में नैना देवी मंदिर के पास खरीदारी कर सकते हैं। नैनीताल माल रोड मोमबत्तियों, फ्रिज मैग्नेट, लकड़ी के सामान, चाबी की जंजीरों और आर्टिफिशियल ज्वेलरी के लिए काफी प्रसिद्ध है। इसके अलावा, नैना देवी के पास बहुत सारे पर्यटक आकर्षण हैं।  

 

श्री नैना देवी जी की आरती इस प्रकार है:

तेरा अदभुत रूप निराला,
आजा! मेरी नैना माई ए |

तुझपै तन मन धन सब वारूं,
आजा मेरी नैना माई ए ||

सुन्दर भवन बनाया तेरा,
तेरी शोभा न्यारी |

नीके नीके खम्भे लागे,
अद्-भुत चित्तर करी
तेरा रंग बिरंगा द्वारा || आजा

झाँझा और मिरदंगा बाजे,
और बाजे शहनाई |

तुरई नगाड़ा ढोलक बाजे,
तबला शब्त सुनाई |
तेरे द्वारे नौबत बाजे || आजा

पीला चोला जरद किनारी,
लाल ध्वजा फहराये |

सिर लालों दा मुकुट विराजे,
निगाह नहिं ठहराये |
तेरा रूप न वरना जाए || आजा

पान सुपारी ध्वजा,
नारियल भेंट तिहारी लागे |

बालक बूढ़े नर नारी की,
भीड़ खड़ी तेरे आगे |
तेरी जय जयकार मनावे || आजा

कोई गाए कोई बजाए,
कोई ध्यान लगाये |
कोई बैठा तेरे आंगन में,

नाम की टेर सुनाये |
कोई नृत्य करे तेरे आगे || आजा

कोई मांगे बेटा बेटी,
किसी को कंचन माया |

कोई माँगे जीवन साथी,
कोई सुन्दर काया |
भक्तों किरपा तेरी मांगे ||



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श्री नैना देवी जी की आरती इस प्रकार है:

तेरा अदभुत रूप निराला,
आजा! मेरी नैना माई ए |

तुझपै तन मन धन सब वारूं,
आजा मेरी नैना माई ए ||

सुन्दर भवन बनाया तेरा,
तेरी शोभा न्यारी |

नीके नीके खम्भे लागे,
अद्-भुत चित्तर करी
तेरा रंग बिरंगा द्वारा || आजा

झाँझा और मिरदंगा बाजे,
और बाजे शहनाई |

तुरई नगाड़ा ढोलक बाजे,
तबला शब्त सुनाई |
तेरे द्वारे नौबत बाजे || आजा

पीला चोला जरद किनारी,
लाल ध्वजा फहराये |

सिर लालों दा मुकुट विराजे,
निगाह नहिं ठहराये |
तेरा रूप न वरना जाए || आजा

पान सुपारी ध्वजा,
नारियल भेंट तिहारी लागे |

बालक बूढ़े नर नारी की,
भीड़ खड़ी तेरे आगे |
तेरी जय जयकार मनावे || आजा

कोई गाए कोई बजाए,
कोई ध्यान लगाये |
कोई बैठा तेरे आंगन में,

नाम की टेर सुनाये |
कोई नृत्य करे तेरे आगे || आजा

कोई मांगे बेटा बेटी,
किसी को कंचन माया |

कोई माँगे जीवन साथी,
कोई सुन्दर काया |
भक्तों किरपा तेरी मांगे ||



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श्री नैना देवी जी की आरती इस प्रकार है:

तेरा अदभुत रूप निराला,
आजा! मेरी नैना माई ए |

तुझपै तन मन धन सब वारूं,
आजा मेरी नैना माई ए ||

सुन्दर भवन बनाया तेरा,
तेरी शोभा न्यारी |

नीके नीके खम्भे लागे,
अद्-भुत चित्तर करी
तेरा रंग बिरंगा द्वारा || आजा

झाँझा और मिरदंगा बाजे,
और बाजे शहनाई |

तुरई नगाड़ा ढोलक बाजे,
तबला शब्त सुनाई |
तेरे द्वारे नौबत बाजे || आजा

पीला चोला जरद किनारी,
लाल ध्वजा फहराये |

सिर लालों दा मुकुट विराजे,
निगाह नहिं ठहराये |
तेरा रूप न वरना जाए || आजा

पान सुपारी ध्वजा,
नारियल भेंट तिहारी लागे |

बालक बूढ़े नर नारी की,
भीड़ खड़ी तेरे आगे |
तेरी जय जयकार मनावे || आजा

कोई गाए कोई बजाए,
कोई ध्यान लगाये |
कोई बैठा तेरे आंगन में,

नाम की टेर सुनाये |
कोई नृत्य करे तेरे आगे || आजा

कोई मांगे बेटा बेटी,
किसी को कंचन माया |

कोई माँगे जीवन साथी,
कोई सुन्दर काया |
भक्तों किरपा तेरी मांगे ||



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Thursday, 24 August 2023

उज्जयिनी शक्तिपीठ

 यह शक्तिपीठ महाकाल मंदिर में है। यहां सती का ओष्ठ गिरा था। इसे अवंतिका यानी उज्जैन की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। इसकी आराधना से साधक को यश और कीर्ति मिलती है तथा शहर का चहुमुंखी विकास भी देवी के आशीर्वाद से हो सकता है। महाकाल में पालकी द्वार के पास श्रीराम मंदिर के पीछे देवी अवंतिका का मंदिर है। ज्योतिषविद् पं. आनंदशंकर व्यास के अनुसार मुंबई की मुंबा देवी के समान ही अवंतिका देवी का भी महत्व है। यह शहर की अधिष्ठात्री देवी है। देवी का उल्लेख देवी भागवत में भी है। कल्याण के शक्ति अंक में भी इस शक्तिपीठ के बारे में जानकारी दी गई है। अवंतिका देवी मंदिर के पुजारी पं. लोकेश व्यास के अनुसार यह देवी शक्तिपीठ पुराण प्रसिद्ध है।

 प्रतिमा स्वयं-भू है। ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मंदिर के सभामंडप में विराजित देवी  शक्तिपीठ है |

इस मंदिर में राजा विक्रमादित्य ने मां को प्रसन्न करने के लिए अपना शीश चढ़ाया था. इस मंदिर में दो 51 फीटे के ऊंचे स्तंम्भों पर 1100 दीये जलाए जाते हैं.

Wednesday, 23 August 2023

हिंगलजा माता





हिंगलाज माता मंदिर, पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में सिंध राज्य की राजधानी कराची से 120 कि॰मी॰ उत्तर-पश्चिम में हिंगोल नदी के तट पर ल्यारी तहसील के मकराना के तटीय क्षेत्र में हिंगलाज में स्थित एक हिन्दू मंदिर है। यह इक्यावन शक्तिपीठ में से एक माना जाता है और कहते हैं कि यहां सती माता के शव को भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से काटे जाने पर यहां उनका ब्रह्मरंध्र (सिर) गिरा था।

हिंगलाज नाम के अतिरिक्त हिंगलाज देवी का चरित्र या इसका इतिहास अभी तक अप्राप्य है। हिंगलाज देवी से सम्बन्धित छंद गीत चिरजाए अवश्य मिलती है। प्रसिद्ध है कि सातो द्वीपों में सब शक्तियां रात्रि में रास रचाती है और प्रात:काल सब शक्तियां भगवती हिंगलाज के गिर में आ जाती है-

सातो द्वीप शक्ति सब रात को रचात रास।
प्रात:आप तिहु मात हिंगलाज गिर में॥


ये देवी सूर्य से भी अधिक तेजस्वी है और स्वेच्छा से अवतार धारण करती है। इस आदि शक्ति ने ८वीं शताब्दी में सिंध प्रान्त में मामड़(मम्मट) के घर में आवड देवी के रूप में द्वितीय अवतार धारण किया। ये सात बहिने थी-आवड, गुलो, हुली, रेप्यली, आछो, चंचिक और लध्वी। ये सब परम सुन्दरियां थी। कहते है कि इनकी सुन्दरता पर सिंध का यवन बादशाह हमीर सुमरा मुग्ध था। इसी कारण उसने अपने विवाह का प्रस्ताव भेजा पर इनके पिता के मना करने पर बादशाह ने उनको कैद कर लिया। यह देखकर छ: देवियाँ टू सिंध से तेमडा पर्वत पर आ गईं। एक बहिन काठियावाड़ के दक्षिण पर्वतीय प्रदेश में 'तांतणियादरा' नामक नाले के ऊपर अपना स्थान बनाकर रहने लगी। यह भावनगर कि कुलदेवी मानी जाती हैं, ओर समस्त काठियावाड़ में भक्ति भाव से इसकी पूजा होती है। जब आवड देवी ने तेमडा पर्वत को अपना निवास स्थान बनाया तब इनके दर्शनाथ अनेक चारणों का आवागमन इनके स्थान कि और निरंतर होने लगा और इनके दर्शनाथ हेतु लोग समय पाकर यही राजस्थान में ही बस गए। इन्होने तेमडा नाम के राक्षस को मारा था, अत: इन्हे तेमडेजी भी कहते है। आवड जी का मुख्य स्थान जैसलमेर से बीस मील दूर एक पहाडी पर बना है। 15वीं शताब्दी में राजस्थान अनेक छोटे छोटे राज्यों में विभक्त था। जागीरदारों में परस्पर बड़ी खींचतान थी और एक दूसरे को रियासतो में लुट खसोट करते थे, जनता में त्राहि त्राहि मची हुई थी। इस कष्ट के निवारणार्थ ही महाशक्ति हिंगलाज ने सुआप गाँव के चारण मेहाजी की धर्मपत्नी देवलदेवी के गर्भ से श्री करणीजी के रूप में अवतार ग्रहण किया।

श्राद्ध न करनेसे हानि

अपने शास्त्रने श्राद्ध न करनेसे होनेवाली जो हानि बतायी है, उसे जानकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। अतः आद्ध-तत्त्वसे परिचित होना तथा उसके अनुष्ठा...