Wednesday 20 May 2020

मी नंदेशनाथ ३३

श्री कृष्ण पाहत असताना भगवान भोलेनाथ शिव जेव्हा बाल कृष्णा चे दर्शन करण्यासाठी येतात तेव्हा यशोदा त्यांना दर्शन घेऊ देत नाही कारण यशोदे ला वाटते की हे कोणी मायावी आहेत. 
तेव्हा ते यशोदे ला सांगतात की आम्ही कैलास हून आलो आहे 
तेव्हा यशोदा देवी म्हणतात की जर येवढ्या लांबून आले आहात तर तिकडे शिवाच दर्शन घ्यायचं होत एवढ्या लांब येऊन माझ्या बालकाचे दर्शनाचा हट्ट का करतात. 
तेव्हा प्रत्यक्ष शिव जे एक जोगी बनून आलेले आहे ते म्हणतात,
की भगवंताचे दर्शन घेणे खूप सोपे आहे परंतु भगवंताने जो अवतार धारण केला आहे त्याचे दर्शन घेणे खूप अवघड आहे. आणि तो अवतार म्हणजे आपले सतगुरू हेच समजावे.
परम पिता परमात्म्याच्या अवतारी देहाचे दर्शन घेतल्यावर अनेको प्रतीचा आनंद प्राप्त होतो. 
आपल्या सभोवताली सुद्धा अनेक सिध्द जपी तपी आहेत जे भगवंताचे अवतारी अंश आहेत की ज्यांच्या केवळ दर्शन मात्रेने आपले अनंत जन्माचे पाप नष्ट होऊन मोक्ष प्राप्ती होते परंतु आपल्याला ती दृष्टी नसल्याने आपण ते पाहू शकत नाही. 
परंतु आपल्या शुद्ध अंतःकरणाने त्यांचा शोध घेण्याचा नक्की प्रयत्न करावा
कोणाचे मन दुखवू नये, कोणावर रागावू नये, अधिकार गाजवू नये नाहीतर अहंकार प्राप्त होऊन अधोगती होते.

Tuesday 19 May 2020

रात मै अंधेपन बिमारी निवारन प्रयोग

रात मै कम दिखने की बीमारी का इलाज 

मंत्र का उपयोग जिस किसी व्यक्ति को रात मै अंधेपन की बीमारी है वो प्रतिदिन २१ बार मोरपीस लेकर झाड़ा करे।।
जब तक दोष पूर्ण रूप से खत्म नहीं होता तब तक करना है।
मंत्र -

 ॐ नमो आदेश गुरुको-सत्यनाम श्रीराम काटे रतौंधी, जाय रतौंधी । ईश्वर महादेव की दुहाई । दुहाई गुरु गोरखनाथ की, दुहाई कालका माई की, रतौंधी जाय फिर न आय । आन महावीर की। श्री नाथ जी गुरुजी को आदेश |आदेश||

Sunday 17 May 2020

नेत्रपीडा निवारण

नेत्रपीडा निवारण 
कई सारे लोगों को अपने नेत्र मै तकलीफ होती है
उस तकलीफ को दूर करने के लिए इस मंत्र का प्रतिदिन २१ बार मंत्र जाप करे ।
मंत्र जाप करने के पश्चात पानी अपनी आंखो पर लगाए ।।
आपको ऐसा ७ दिन करना है ।।
मंत्र -
 संयातिं च सुकन्यांच यवनं शक्रमश्विनौ । एतेषां स्मरणान्नृणां नेत्ररोगो विशाम्यति ॥
 

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Sunday 10 May 2020

कार्य सिद्ध मंत्र

अगर आपको कोई भी कार्य सिद्ध करना है तो कार्य करने से पहले इस मंत्र का जाप अवश्य करे आपका कार्य सफल होगा
प्रतिदिन १ माला १२५ दिन जपनी है मंत्र सिद्ध हो जाएगा।

कार्य सिद्धि मंत्र 
हे माँ काली ! कलकत्तेवाली, तेरे द्वार खड़ा एक स्वाली । मेरी माँ! ज्यातावाली, मेरी अधूरी अभिलाषा, तेरे बिन नहीं पूरी होनेवाली । कृपा-दृष्टि करो-आशा पूरी करो । तेरी पुजाही करे वन्दना-सच्चे मन से । सब दुःख हरो, सब सङ्कट हरो । इच्छाएँ मेरी सब पूरे करो तुम । हे माँ ज्योता वाली-माँ कलकत्ते वाली । 

Thursday 7 May 2020

भण्डार मन्त्र

ॐ सत नमो आदेश गुरुजी को आदेश ॐ गुरुजी ॐ गणपत गणपत ऋद्ध पर बैठे गणपत आप देवी पूजो केसर कापूर दोहरा कोट तेहरी खाई कंटक मार खप्पर में लिजे ऋद्धि टूटे नहीं विघ्न व्यापे नहीं हाजर हाजर गणपत की दुहाई गणपत पूजे अमृते सदा फल दीजे, धर्म की डिब्बी पाताल का ठीया नौ नाथ चौरासी सिद्धा मिल भण्डार किया भूरी पाली काली डिब्बी शिवजी के पास मड़ी मसाणी मैं फिरा गुरु हमारे साथ घरत की डिब्बी ब्रह्मा काली ब्रह्मा विष्णु मिल अग्नि प्रजाली नीचे नीचे आग उपर पानी तपो रसोई आद भवानी घ्रततो गणपत पूरे तत पूरे गणेश ऋद्ध सिद्ध तो श्री ईश्वर पूरे तव प्रसाद महेश अन्नपूर्णाय विद्महे महा अन्नपूर्णाय धीमहि तन्नो अन्नपूर्णा प्रचोदयात। श्री नाथजी गुरुजी को आदेश। आदेश।

मन्त्र सिद्धिः- यह मन्त्र ग्रहण काल में जप करके सिद्ध करें।  गणेश जी के मन्दिर में जाकर तदनन्तर घर में भोजन तैयार करें, २१ मोतीचूर के लड्डू बनावें, एक तास लोटा लेकर बहते जल में जायें, पांच लड्डू, सिन्दूर, पुष्प जल पर छोड़कर लोटा जल से भर लेवें। अत: गणेश मन्दिर में जावें यहां भी पांच लड्डू, २१ दूब दुर्वा, लाल पुष्प, सिन्दूर तथा ५ सुपारी, ५ लौंग, इलायची गणेश जी को चढ़ाकर पूजा करें। जल भरे लोटे में एक सुपारी, लौंग, इलायची डालें। लोटा घर ले आएं। जहां भोजन सामग्री रखते हैं वहां इस लोटे का कलश स्थापन करें। मन्त्र पाठ७ या ११ बार करके कलश का पूजन करके एक लड्डू चढ़ावें, एक लड्डू पंछियों को देखकर बाकी लड्डू ७ महात्मा या ९ कन्या को खिलावें।

अत: भोजन आरम्भ करें। भोजन में कभी कमी नहीं आयेगी। अनेक लोक भोजन भण्डार भरपूर होकर करेंगे।

ऋषि (ऋषि) मन्त्र

सत नमो आदेश। गुरुजी को आदेश। ॐ गुरुजी। ओं निरंजनी निरा रुपी सोई जोत स्वरुपी बैठ सिद्धासन देवी जी ऋषि मन्त्र सुनाया आचार विचार ब्रह्माजी कर आद रचाया आओ ऋद्ध बैठो सिद्ध इलंगौ रुप विलंगी बाड़ी सवा शेर विष खाया दिहाडी जेती खाय तेती जरे तिस की रक्षा शम्भूजती गुरु गोरक्षनाथ जी करे। सोई पीवे सोई जरे सोई अमर रहे कहो जी सन्त कहां से आया, अमरपुरी से आया अमरपुर से क्या लाया ऋष मन्त्र ल्याया ऋष मन्त्र का करो विचार कौन कौन ऋष बोलिये आद ऋष जुगाद ऋष नारद ऋष, ऋष की कै पुत्री बोलिये। सूरा ऋष, पारा ऋष, माना ऋष सनकादिक,सनकादिक ऋष कि कै पुत्री बोलिये मेदनी पत्री अघोर-गायत्री कौन भाषा कौन शाखा शिव भाषा शक्ति शाखा ऋष मन्त्र अलख जी भाखा पढ़ ऋष मन्त्र ,कौली खावे गुरु के वचन अमरापुर जावे बिना ऋष मन्त्र कौली खावे पिण्ड पडे नरक में जावे, एता ऋषि मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया। अनन्त कोट सिद्ध मे श्री शम्भूजती गुरु गोरक्षनाथ जी ने कहा श्री नाथजी गुरुजी को आदेश। आदेश। आदेश।

[विशेष:- इस मन्त्र का पाठ करके ध्यान साधना में एकाग्रता आकर ऋषि, मुनि, साधु, सन्त के दर्शन होंगे। ४१ दिन पाठ करने पर वार्तालाप होगा। ध्यान के पूर्व २१ प्राणायाम करना अनिवार्य है।]

पितृ -स्तोत्र

अपने पितृ देवता के मुक्ति और शुभ आशीर्वाद के लिए नित्य जाप अवश्य करे |

अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा।
तान् नमस्याम्यहं सर्वान् पितृनप्सूदधावपि।।
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।
द्यावापृथिव्योश्च तथा नमस्यामि कृतांजलिः।।
देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येऽहं कृतांजलिः।।
प्रजापतं कश्यपाय सोमाय वरूणाय च।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृतांजलिः।।
नमो गणेभ्यः सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।।
अग्निरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्।
अग्निषोममयं विश्वं यत एतदशेषतः।।
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिणः।।
तेभ्योऽखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतमानसः।
नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदन्तु स्वधाभुजः

Saturday 2 May 2020

मी नंदेशनाथ - ३२

ध्यान 

ध्यान ही समाधीची संजीवन अवस्था आहे तो बोलण्याचा समजून सांगण्याचा विषय नाही तो समजून घेऊन अनुभवण्याचा विषय आहे.

ध्यानातून भगवंताचे दर्शन होते त्याच्या अफाट शक्तीचे अस्तित्व समजते ध्यानातून शरीरात चैतन्य निर्माण होते 
भगवंत कसा आहे तो कार्य कसे करतो तो बोलतो कसा दिसतो कसा हे फक्त ध्यानाच्या अवस्थेतून समजू शकते. 

ध्यान लागत नसेल तर आधी प्राणायाम करून ध्यान करायला बसावे म्हणजे शरीरात श्वास कसा भ्रमण करतो ते समजते. 

अनेक विचार येतात ध्यान करताना परंतु सातत्य ठेवल्यास २१ दिवसा नंतर फरक दिसू लागतो मन निर्विकार होते आणि ध्यान लागायला सुरवा त होते त्यामुळे घाबरु नये अती त्याबद्दल विचार करू नये.

येणारा प्रत्येक चांगला वाईट अनुभव सतगुरुं ना सांगावा म्हणजे ध्यान बरोबर की नाही ते सांगू शकतील. 

श्राद्ध न करनेसे हानि

अपने शास्त्रने श्राद्ध न करनेसे होनेवाली जो हानि बतायी है, उसे जानकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। अतः आद्ध-तत्त्वसे परिचित होना तथा उसके अनुष्ठा...