Sunday, 5 May 2024

श्राद्ध न करनेसे हानि


अपने शास्त्रने श्राद्ध न करनेसे होनेवाली जो हानि बतायी है, उसे जानकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। अतः आद्ध-तत्त्वसे परिचित होना तथा उसके अनुष्ठानके लिये तत्पर रहना अत्यन्त आवश्यक है। यह सर्वविदित है कि मृत व्यक्ति इस महायात्रामें अपना स्थूल शरीर भी नहीं ले जा सकता है तब पाथेय (अन्न-जल) कैसे ने जा सकता है? उस समय उसके सगे-सम्बन्धी श्राद्धविधिसे उसे जो कुछ देते हैं, वही उसे मिलता है। शास्त्रने मरणोपरान्त पिण्डदानकी व्यवस्था की है। सर्वप्रथम शवयात्राके अन्तर्गत छः पिण्ड दिये जाते हैं, जनसे भूमिके अधिष्ठातृ देवताओंकी प्रसन्नता तथा भूत-पिशाचोंद्वारा होनेवाली बाधाओंका निराकरण आदि बयोजन सिद्ध होते हैं। इसके साथ ही दशगात्रमें दिये जानेवाले दस पिण्डोंके द्वारा जीवको आतिवाहिक सूक्ष्म गरीरकी प्राप्ति होती है। यह मृत व्यक्तिकी महायात्राके प्रारम्भकी बात हुई। अब आगे उसे पाथेय (रास्तेके नोजन- अन्न-जल आदि) की आवश्यकता पड़ती है, जो उत्तमषोडशीमें दिये जानेवाले पिण्डदानसे उसे ाप्त होता है। यदि सगे-सम्बन्धी, पुत्र-पौत्रादि न दें तो भूख-प्याससे उसे वहाँ बहुत दारुण दुःख होता है।

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श्राद्ध न करनेसे हानि

अपने शास्त्रने श्राद्ध न करनेसे होनेवाली जो हानि बतायी है, उसे जानकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। अतः आद्ध-तत्त्वसे परिचित होना तथा उसके अनुष्ठा...