Wednesday 28 March 2018

Baglamukhi Sadhna (बगलामुखी साधना)



                           बगलामुखी साधना 






शत्रु नाश, वाक सिद्धि, वाद-विवाद में विजय के लिए देवी बगलामुखी की उपासना की जाती है।

विनियोगः-
ॐ अस्य चतुरक्षर बगला मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, बगलामुखी देवता, ह्लीं बीजं, आं शक्तिः क्रों कीलकं, सर्वार्थ सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।  
ऋष्यादि-न्यासः-   
ब्रह्मा ऋषये नमः शिरसि, 
गायत्री छन्दसे नमः मुखे, 
बगलामुखी देवतायै नमः हृदि, 
ह्लीं बीजाय नमः गुह्ये, 
आं शक्तये नमः पादयो, 
क्रों कीलकाय नमः नाभौ, 
सर्वार्थ सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।  

*षडङ्ग-न्यास कर-न्यासअंग-न्यास  
ॐह्लां अंगुष्ठाभ्यां नमःहृदयाय नमः 
ॐह्लीं तर्जनीभ्यां नमःशिरसे स्वाहा 
ॐह्लूं मध्यमाभ्यां नमःशिखायै वषट् 
ॐह्लैं अनामिकाभ्यां नमःकवचाय हुं 
ॐह्लौं कनिष्ठिकाभ्यां नमःनेत्र-त्रयाय वौषट् 
ॐह्लःकरतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमःअस्त्राय फट्  

ध्यानः-
हाथ में पीले फूल, पीले अक्षत और जल लेकर ‘ध्यान’ करे -  
कुटिलालक-संयुक्तां मदाघूर्णित-लोचनां, 
मदिरामोद-वदनां प्रवाल-सदृशाधराम् । 
सुवर्ण-कलश-प्रख्य-कठिन-स्तन-मण्डलां, 
आवर्त्त-विलसन्नाभिं सूक्ष्म-मध्यम-संयुताम् । 
रम्भोरु-पाद-पद्मां तां पीत-वस्त्र-समावृताम् ।।  
पुरश्चरण में चार लाख जप कर, मधूक-पुष्प-मिश्रित जल से दशांश तर्पण कर घृत-शर्करा-युक्त पायस से दशांश हवन ।  

मंत्र - 
ॐ ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा ।  

गायत्री मंत्र- 
ऊँ ह्लीं ब्रह्मास्त्राय विद्महे स्तम्भनबाणाय धीमहि। तन्नो बगला प्रचोदयात्।।  

अष्टाक्षर गायत्री मंत्र
ऊँ ह्रीं हं स: सोहं स्वाहा। हंसहंसाय विद्महे सोहं हंसाय धीमहि। तन्नो हंस: प्रचोदयात्।।
   
अष्टाक्षर मंत्र
ऊँ आं ह्लीं क्रों हुं फट् स्वाहा
   
त्र्यक्षर मंत्र- 
ऊँ ह्लीं ऊँ
   
नवाक्षर मंत्र- 
ऊँ ह्लीं क्लीं ह्लीं बगलामुखि ठ:
   
एकादशाक्षर मंत्र- 
ऊँ ह्लीं क्लीं ह्लीं बगलामुखि स्वाहा।
   ऊँ ह्ल्रीं हूं ह्लूं बगलामुखि ह्लां ह्लीं ह्लूं सर्वदुष्टानां ह्लैं ह्लौं ह्ल: वाचं मुखं पदं स्तम्भय स्तम्भय ह्ल: 
ह्लौं ह्लैं जिह्वां कीलय ह्लूं ह्लीं ह्लां बुद्धिं विनाशाय ह्लूं हूं ह्लीं ऊँ हूं फट्।
   षट्त्रिंशदक्षरी मंत्र- ऊँ ह्ल्रीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ऊँ स्वाहा।
  
1) भय नाशक मंत्र—–
   अगर आप किसी भी व्यक्ति वस्तु परिस्थिति से डरते है और अज्ञात डर सदा आप पर हावी रहता है तो देवी के भय नाशक मंत्र का जाप करना चाहिए…
   ॐ ह्लीं ह्लीं ह्लीं बगले सर्व भयं हन
पीले रंग के वस्त्र और हल्दी की गांठें देवी को अर्पित करें…
पुष्प,अक्षत,धूप दीप से पूजन करें…
   रुद्राक्ष की माला से 6 माला का मंत्र जप करें…
दक्षिण दिशा की और मुख रखें….  

2) शत्रु नाशक मंत्र—-  
अगर शत्रुओं नें जीना दूभर कर रखा हो, कोर्ट कचहरी पुलिस के चक्करों से तंग हो गए हों, शत्रु चैन से जीने नहीं दे रहे, प्रतिस्पर्धी आपको परेशान कर रहे हैं तो देवी के शत्रु नाशक मंत्र का जाप करना चाहिए….
   ॐ बगलामुखी देव्यै ह्लीं ह्रीं क्लीं शत्रु नाशं कुरु
नारियल काले वस्त्र में लपेट कर बगलामुखी देवी को अर्पित करें….
   मूर्ती या चित्र के सम्मुख गुगुल की धूनी जलाये ….

    सुरक्षा कवच का मंत्र—-
प्रतिदिन प्रस्तुत मंत्र का जाप करने से आपकी सब ओर रक्षा होती है, त्रिलोकी में कोई आपको हानि नहीं पहुंचा सकता ….
   ॐ हां हां हां ह्लीं बज्र कवचाय हुम
देवी माँ को पान मिठाई फल सहित पञ्च मेवा अर्पित करें..
छोटी छोटी कन्याओं को प्रसाद व दक्षिणा दें…
   रुद्राक्ष की माला से 1 माला का मंत्र जप करें…
मंत्र जाप के समय पूर्व की ओर मुख रखें…
   ये स्तम्भन की देवी भी हैं। कहा जाता है कि सारे ब्रह्मांड की शक्ति मिलकर भी इनका मुकाबला नहीं कर सकती। 

   बगलामुखी देवी को प्रसन्न करने के लिए 36 अक्षरों का बगलामुखी महामंत्र 
   ‘ऊं हल्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय, जिहवां कीलय बुद्धिं विनाशय हल्रीं ऊं स्वाहा’ का जप,
हल्दी की माला पर करना चाहिए

   बल प्रदाता मंत्र—-
यदि आप बलशाली बनने के इच्छुक हो अर्थात चाहे देहिक रूप से, या सामाजिक या राजनैतिक रूप से या फिर आर्थिक रूप से बल प्राप्त करना चाहते हैं तो देवी के बल प्रदाता मंत्र का जाप करना चाहिए…
   ॐ हुं हां ह्लीं देव्यै शौर्यं प्रयच्छ
पक्षियों को व मीन अर्थात मछलियों को भोजन देने से देवी प्रसन्न होती है…
पुष्प सुगंधी हल्दी केसर चन्दन मिला पीला जल देवी को को अर्पित करना चाहिए…
पीले कम्बल के आसन पर इस मंत्र को जपें….
रुद्राक्ष की माला से 7 माला मंत्र जप करें…
मंत्र जाप के समय उत्तर की ओर मुख रखें

   लम्बी आयु का मंत्र—-
   यदि आपकी कुंडली कहती है कि अकाल मृत्यु का योग है, या आप सदा बीमार ही रहते हों, अपनी आयु को ले कर परेशान हों तो देवी के ब्रह्म विद्या मंत्र का जाप करना चाहिए…
   ॐ ह्लीं ह्लीं ह्लीं ब्रह्मविद्या स्वरूपिणी स्वाहा:
   पीले कपडे व भोजन सामग्री आता दाल चावल आदि का दान करें…
मजदूरों, साधुओं,ब्राह्मणों व गरीबों को भोजन खिलाये…
प्रसाद पूरे परिवार में बाँटें….
रुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करें…
मंत्र जाप के समय पूर्व की ओर मुख रखें

    बच्चों की रक्षा का मंत्र
   यदि आप बच्चों की सुरक्षा को ले कर सदा चिंतित रहते हैं, बच्चों को रोगों से, दुर्घटनाओं से, ग्रह दशा से और बुरी संगत से बचाना चाहते हैं तो देवी के रक्षा मंत्र का जाप करना चाहिए.. .
   ॐ हं ह्लीं बगलामुखी देव्यै कुमारं रक्ष रक्ष
देवी माँ को मीठी रोटी का भोग लगायें…
दो नारियल देवी माँ को अर्पित करें…
रुद्राक्ष की माला से 6 माला का मंत्र जप करें….
मंत्र जाप के समय पश्चिम की ओर मुख रखें…
   प्रतियोगिता नोकरी में सफलता का मंत्र—–
   आपने कई बार इंटरवियु या प्रतियोगिताओं को जीतने की कोशिश की होगी और आप सदा पहुँच कर हार जाते हैं, आपको मेहनत के मुताबिक फल नहीं मिलता, किसी क्षेत्र में भी सफल नहीं हो पा रहे, तो देवी के साफल्य मंत्र का जाप करें….
   ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं बगामुखी देव्यै ह्लीं साफल्यं देहि देहि स्वाहा:
बेसन का हलवा प्रसाद रूप में बना कर चढ़ाएं…
देवी की प्रतिमा या चित्र के सम्मुख एक अखंड दीपक जला कर रखें…
रुद्राक्ष की माला से 8 माला का मंत्र जप करें…
मंत्र जाप के समय पूर्व की और मुख रखें

   जादू टोना नाशक मंत्र
   यदि आपको लगता है कि आप किसी बुरु शक्ति से पीड़ित हैं, नजर जादू टोना या तंत्र मंत्र आपके जीवन में जहर घोल रहा है, आप उन्नति ही नहीं कर पा रहे अथवा भूत प्रेत की बाधा सता रही हो तो देवी के तंत्र बाधा नाशक मंत्र का जाप करना चाहिए….
   ॐ ह्लीं श्रीं ह्लीं पीताम्बरे तंत्र बाधाम नाशय नाशय
   आटे के तीन दिये बनाये व देसी घी ड़ाल कर जलाएं….
कपूर से देवी की आरती करें….
रुद्राक्ष की माला से 7 माला का मंत्र जप करें…
मंत्र जाप के समय दक्षिण की और मुख रखे

   शत्रु नाशक मंत्र
   अगर शत्रुओं नें जीना दूभर कर रखा हो, कोर्ट कचहरी पुलिस के चक्करों से तंग हो गए हों, शत्रु चैन से जीने नहीं दे रहे, प्रतिस्पर्धी आपको परेशान कर रहे हैं तो देवी के शत्रु नाशक मंत्र का जाप करना चाहिए….
   ॐ बगलामुखी देव्यै ह्लीं ह्रीं क्लीं शत्रु नाशं कुरु
   नारियल काले वस्त्र में लपेट कर बगलामुखी देवी को अर्पित करें….
मूर्ती या चित्र के सम्मुख गुगुल की धूनी जलाये ….
रुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करें…
मंत्र जाप के समय पश्चिम कि ओर मुख रखें

   भय नाशक मंत्र
   अगर आप किसी भी व्यक्ति वस्तु परिस्थिति से डरते है और अज्ञात डर सदा आप पर हावी रहता है तो देवी के भय नाशक मंत्र का जाप करना चाहिए…
   ॐ ह्लीं ह्लीं ह्लीं बगले सर्व भयं हन
   पीले रंग के वस्त्र और हल्दी की गांठें देवी को अर्पित करें…
पुष्प,अक्षत,धूप दीप से पूजन करें…
रुद्राक्ष की माला से 6 माला का मंत्र जप करें…
   दक्षिण दिशा की और मुह करके जप करे संक्षिप्त साधना विधि, छत्तीस अक्षर के मंत्र का विनियोग ऋयादिन्यास, करन्यास, हृदयाविन्यास व मंत्र इस प्रकार है--
  
विनियोग
   ऊँ अस्य श्री बगलामुखी मंत्रस्य नारद ऋषिः
त्रिष्टुप छंदः श्री बगलामुखी देवता ह्लीं बीजं स्वाहा शक्तिः प्रणवः कीलकं ममाभीष्ट सिद्धयार्थे जपे विनियोगः।
  
मंत्र इस प्रकार है--
   ऊँ ह्लीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ऊँ स्वाहा।
   मंत्र जाप लक्ष्य बनाकर किया जाए तो उसका दशांश होम करना चाहिए। जिसमें हल्दी, हरताल, चने की दाल, काले तिल एवं शुद्ध घी का प्रयोग करें एवं समिधा में आम की सूखी लकड़ी या पीपल की लकड़ी का भी प्रयोग कर सकते हैं। मंत्र जाप पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख कर करना चाहिए।
   ॐ रीम श्रीम बगलामुखी वाचस्पतये नमः !   

||  साधना विधि  ||
  
इस मन्त्र को बगलामुखी जयंती को पूरी रात लिंग मुद्रा का प्रदर्शन करते हुए सारी रात जप करते रहे यदि थक जाये तो थोडा आराम कर ले पर आसन से न उठे ! इस प्रकार यह मन्त्र एक रात में सिद्ध हो जाता है ! दुसरे दिन  किसी लड़की को पीला प्रसाद जरूर खिलाये और मंदिर में देवी दुर्गा को भी पीले प्रसाद का भोग लगाये !
  
||  प्रयोग विधि  ||
  
 मन्त्र को 21 दिन 21 माला रात्रि में हल्दी की माला से जपे आपकी शत्रु बाधा से सम्बंधित सभी समस्याए शांत हो जाएगी !
  
  
बगलामुखी कवचं  
श्रुत्वा च बगलापूजां स्तोत्रं चाप महेश्वर ।
इदानी श्रोतुमिच्छामि कवचं वद मे प्रभो ॥ १ ॥  
वैरिनाशकरं दिव्यं सर्वाSशुभविनाशनम् ।
शुभदं स्मरणात्पुण्यं त्राहि मां दु:खनाशनम् ॥२॥  
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श्रीभैरव उवाच :   
कवचं शृणु वक्ष्यामि भैरवीप्राणवल्लभम् ।
पठित्वा धारयित्वा तु त्रैलोक्ये विजयी भवेत् ॥३॥  
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ॐ अस्य श्री बगलामुखीकवचस्य नारद ऋषि: ।
अनुष्टप्छन्द: । बगलामुखी देवता । लं बीजम् ।
ऐं कीलकम् पुरुषार्थचष्टयसिद्धये जपे विनियोग: ।
ॐ शिरो मे बगला पातु हृदयैकाक्षरी परा ।
ॐ ह्ली ॐ मे ललाटे च बगला वैरिनाशिनी ॥१॥  
गदाहस्ता सदा पातु मुखं मे मोक्षदायिनी ।
वैरिजिह्वाधरा पातु कण्ठं मे वगलामुखी ॥२॥  
उदरं नाभिदेशं च पातु नित्य परात्परा ।
परात्परतरा पातु मम गुह्यं सुरेश्वरी ॥३॥  
हस्तौ चैव तथा पादौ पार्वती परिपातु मे ।
विवादे विषमे घोरे संग्रामे रिपुसङ्कटे ॥४॥  
पीताम्बरधरा पातु सर्वाङ्गी शिवनर्तकी ।
श्रीविद्या समय पातु मातङ्गी पूरिता शिवा ॥५॥  
पातु पुत्रं सुतांश्चैव कलत्रं कालिका मम ।
पातु नित्य भ्रातरं में पितरं शूलिनी सदा ॥६॥  
रंध्र हि बगलादेव्या: कवचं मन्मुखोदितम् ।
न वै देयममुख्याय सर्वसिद्धिप्रदायकम् ॥ ७॥  
पाठनाद्धारणादस्य पूजनाद्वाञ्छतं लभेत् ।
इदं कवचमज्ञात्वा यो जपेद् बगलामुखीम् ॥८॥  
पिवन्ति शोणितं तस्य योगिन्य: प्राप्य सादरा: ।
वश्ये चाकर्षणो चैव मारणे मोहने तथा ॥९॥  
महाभये विपत्तौ च पठेद्वा पाठयेत्तु य: ।
तस्य सर्वार्थसिद्धि: स्याद् भक्तियुक्तस्य पार्वति ॥१०॥  
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इति श्रीरुद्रयामले बगलामुखी कवचम संपूर्ण ।।  

किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :  
         संस्थापक - शंकरनाथ (महाराष्ट्र ) ९४२०६७५१३३.
             अधिकृत प्रवक्ता - नंदेशनाथ (महाराष्ट्र )  ८८५६९६६४८०.

Sunday 25 March 2018

Batuk Bhairav Sadhna (बटूक भैरव साधना)


                                     बटूक भैरव साधना




बटूक भैरव साधना विलक्षण फल देणे वाली साधना है |जीवन के सभी अभाव, प्रकट व गुप्त शत्रुओ का समुल निवारण करती है | विपन्नता, गुप्त-शत्रू, ऋण, मनोकामना पूर्ती और भगवान भैरव कि कृपा प्राप्ती इस साधना से होती है   
  
विधी -  संकल्प, गणपती पूजन , कुलदेवता पूजन , सतगुरु पूजन , १५                  मिनट गुरुमंत्र जाप,  बटूक भैरव मंत्र , १५ मिनट गुरुमंत्र जाप.
विनियोग » ॐ अस्य श्री बटुकभैरव मन्त्रस्य बृहदारण्यक ऋषिः ,                          अनुष्टुप् छंदः श्रीमद बटुकभैरव देवता बं बीजम् ,
            ह्रीं शक्तिः , ॐकीलकं सर्वार्थ सिद्धार्थे श्रीमद बटुकभैरव प्रीतये                  जपे  विनियोगः ।।  

ऋष्यादिन्यासः ।।  
     बृहदारण्यक ऋषये नमः……शिरसि  
     अनुष्टुप् छंदसे नमः…….. मुखे  
     श्रीमद बटुकभैरव देवतायै नमः……….हृदये  
    बं बीजाय नमः ………गुह्ये  
     ह्रीं शक्तये नमः………..पादयोः 
     ॐ कीलकाय नमः………सर्वांगे   

करन्यासः 
     ॐ ह्रां ब्रां अंगुष्ठाभ्याम् नमः । 
     ॐ ह्रीं ब्रीं तर्जनीभ्याम् नमः। 
     ॐ हूँ ब्रूं मध्यमाभ्याम् नमः। 
     ॐ ह्रैं ब्रैं अनामिकाभ्याम् नमः। 
     ॐ ह्रौं ब्रौं कनिष्टिकाभ्याम् नमः। 
     ॐ ह्रः ब्रः करतल करपृष्ठाभ्याम् नमः।  

हृदयादि न्यासः 
     ॐ ह्रां ब्रां हृदयाय नमः। 
     ॐ ह्रीं ब्रीं शिरसे स्वाहा। 
     ॐ ह्रूं ब्रूं शिखायै वषट् । 
     ॐ ह्रै ब्रैं कवचाय हुम्। 
     ॐ ह्रौं ब्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्। 
     ॐ ह्रः ब्रः अस्त्राय फट्।  

ध्यानम् 
     करकलित कपालः कुण्डली दण्डपाणि, स्तरुणतिमिरनीलो व्याल               यज्ञोपवीती।।
     क्रतुसमयसपर्या विघ्नविच्छेदहेतुर्जयति बटुकनाथ सिद्धिदः                       साधकानाम् ।।  

 मंत्र 
    ॐ ह्रीं बं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं  
     बटुक भैरव जपोंतरांत पुष्प लेकर शाम को बटुक जी को निवेदन करे -  
     ऐं ह्रीं क्लीं श्रीबटुक-भैरवाय आपदुद्धारणाय महान्-श्याम-स्वरूपाय             दीर्घारिष्ट-विनाशाय नाना प्रकार भोग प्रदाय                        
     मम (यजमानस्य वा) सर्वारिष्टं हन हन, पापं मथ मथ, आरोग्यं कुरु         कुरु, राज-द्वारे जयं कुरू कुरू,  व्यापारे     
     लाभं वृद्धिं वृद्धिं, रणे शत्रून् विनाशय विनाशय, पूर्णा आयुः कुरू कुरू,           स्त्री-प्राप्तिं कुरू कुरू, हुम् फट् स्वाहा ।।  

समय - संध्याकाल मै १.३० - ३.३० घंटे 
भोग - गुड + भुने चने, मेदू वडा + दही

श्रीनाथजी  गुरूजी को आदेश आदेश आदेश

किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :  
         संस्थापक - शंकरनाथ (महाराष्ट्र ) ९४२०६७५१३३.
 अधिकृत प्रवक्ता - नंदेशनाथ (महाराष्ट्र )  ८८५६९६६४८०.

Friday 23 March 2018

Kali Sadhna (काली बिजात्मक साधना )


                                     काली बिजात्मक साधना 


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लाल आसन लगा कर, आसन को स्पर्श करते हुए मन्त्र बोले,

    ''ॐ अस्य आसन मन्त्रस्य, मेरु पृष्ठ ऋषिः, सुतलम छंदः,
    कुर्मो देवता आसनाभिमंत्राने विनियोगः । ''

इस मंत्र का जप करते हुए आसन पर बैठे-                                                   
    ''ॐ ह्रीं पृथ्वी त्वया धृता लोका, देवि त्वं विष्णुना धृता च ।                               
     त्वं धारण मां देवि, पवित्रं कुरु च आसनं ।।''

तब आसन पर उत्तराभिमुख होकर बैठे, आचमन करे ।  
     ऊँ ह्रीं आत्मतत्वाय स्वाहा ।
     ऊँ ह्रीं विद्यातत्वाय स्वाहा ।
     ऊँ ह्रीं शिवतत्वाय स्वाहा ।           

इसके बाद पवित्रीकरन करे               
     ऊँ अपवित्रः पवित्रोवा सर्वावस्थाङतोऽपिवा ।
     यः स्मरेत् पुण्डरीकाछं स बाह्याभ्यन्तरःशुचिः ।।                                 
     तत्पश्चात शिखा बन्धन करे ।             
     ऊँ मणिधरि वज्ज्रिणिमहाप्रतिसरे रछ रछ हूँ फट् स्वाहा !!                           

दिग्बन्धन:   

    अपनी बायीं हथेली में जल या लाल अक्षत और लेकर दायीं हथेली से ढकले और इस मन्त्र का जप करे-
    ''ॐ ह्रीं अपसर्पन्तु ते भूता, ये भूता भुवि संस्थिता ।
    ये भूता विध्न कर्तारस्ते नशयन्तु शिवाज्ञया ।।''     

    ॐ ह्रीं. सर्व विघ्नानुत्सारय रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा..                             

दिशाबन्धन:   
    बाए हाथ की हथेली में पीली सरसो को दाए हाथ से ढककर इस मन्त्र का 3 बार जप करे और फिर चारो   
    दिशाओ में फैक दे -
    ''ॐ शत्रुनां ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ह्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं भंजय भंजय नाशय नाशय दिशा रक्ष रक्ष फट्'' ।

भूतशुद्धि:-                         
    दायीं नासिका से श्वास खींचकर-                   
   ''ह्रीं मूलश्रृङ्गाटकात् सुषुम्नापथेन् जीवशिवं परमशिवे योजयामि स्वाहा''                   
    बोलकर जीव शिव को ब्रह्मरन्ध्र में स्थापित करे और एकीकरण की भावना करतेहुए
    बायीं नासिका से श्वास छोड़ दे    ।   पुनः ''यं'' बीज से बायीं नासिका से पूरक करे और                                                        ''सङ्कोचशरीरं शोषय शोषय स्वाहा''
    बोलकर दायीं नासिका से श्वास छोड़ते हुए भावना करे की संकोच शरीर का शोषण हो गया है ।
    पुनः ''रं'' बीज से दायीं नासिका से पूरक करे और
    ''सङ्कोचशरीरं दह दह पच पच स्वाहा''
    बोलकर बायीं नासिका से श्वास छोड़ते हुए भावना करे कि- संकोच शरीर का दहन हो गया है ।
    पुनः ''वं'' बीज से बायीं नासिका से पूरक करे और
    ''परमशिवामृतं वर्षय वर्षय स्वाहा''
    बोलकर दायीं नासिका से श्वास छोड़ते हुए भावना करे कि- जले हुए पाप शरीर की भस्म सहस्त्रार से निकले        हुए अमृत से आप्लावित हो गई है ।
    पुनः ''लं'' बीज से दायीं नासिका से पूरक करे और
    ''शाम्भवशरीरमुत्पादयोत्पादय स्वाहा''
     बोलकर बायीं नासिका से श्वास छोड़ते हुए भावना करे कि- मेरा शरीर दिव्य हो गया है ।
    पुनः ''ह्रीं'' बीज से बायीं और से पूरक करे और
   ''शिवशक्तिमयं शरीर कुरु कुरु स्वाहा''
    बोलकर दायीं और से रेचक करते हुए भावना करे कि-मेरा दिव्य शरीर शिवशक्तिमय हो गया है ।
    पुनः ''हंसः सोहं'' से दायीं और से पूरक करे और
    ''अवतर अवतर शिवपदात् जीव सुषुम्नापथेन प्रविश मूलश्रृंगाटक मुल्लसोलस ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल         हंसः सोहं स्वाहा''
     बोलकर बायीं ओर से रेचक करते हुए भावना करे कि- शिव के साथ सहस्त्रार में जो जीवात्मा स्थापित किया       था, वह सुषुम्ना मार्ग से पुनः मूलाधार में स्थित हो गया है ।

अब गुरु का ध्यान करें !!                       
     ऊँ गुरुर्ब्रम्हा गुरुर्विष्नु गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुर्साछात्परब्रम्ह तस्मै श्री गुरुवे नमः !!                 

     इसके बाद माला मन्त्र से माला को प्रनाम करे माम्माले महामाले प्रत्यक्ष शिव रूपिणी !
     चतुवॆगॆस्त्वयि न्यस्तस्तमाने सिद्धिदा भव !!                                               
     ऊँ ह्रीं गं अविध्नम् कुरु माले जप काले तु सर्वदा ! निर्विघ्न्म् कुरु देवेशि दन्त माले नमोस्तुते !!                   1. जप शुरू करें 2 माला :-             
     ''ऐं गुरुभ्यो नमः.                                           
      जप फल को माला को सिर पर रखकर दायें हाथ की मुट्ठी बँधी हुयी हृदय से हाथ लगा कर गुरु को   
      जपसमर्पित करे ।     
            ॐ गुह्यातिगुह्यगोप्त्रा त्वं गृहाणास्मत्कृतम्जपम् !!
            सिद्धिर्भवतु मे देव / देवि तवत्प्रसादान्महेश्वरः !!                                                       
            2. इस के बाद दायें हथ में जल लेकर निम्न विनियोग पढें:-         
            विनियोगः-                             
            ॐ अस्य श्री मद्दक्षिणकालिका मंत्रस्य श्री महाकाल भैरव ऋषिः उष्णिक छन्दः श्रीमद् दक्षिणकालिका                देवता, ह्रीं बीजम्, हूँ शक्तिः, क्रीं कीलकं, श्री मद् दछिण कालिका प्रीतये जपे विनियोगः ।   
            ( जल गिरा दें ) 

ऋष्यादिन्यासः                                   
           श्री महाकाल भैरव ऋषये नम: शिरसि ।
            उष्णिक छन्दसे नमः मुखे ।               
            श्री मद्दक्षिणकालिका देवतायै नमः हृदि ।
            ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये ।                         
            हूँ शक्तये नमः पादयो ।                     
            क्रीं कीलकाय नमः नाभौ ।
            श्रीमद्दक्षिणकालिका प्रीतये जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे । 

 करन्यास:                                         
            ॐ ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः ।                 
            ॐ ह्रीं तर्जनिभ्यां स्वाहा ।                 
            ॐ ह्रूं मध्यामाभ्यां वषट् ।                 
            ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां हुम् ।                 
            ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां वौषट् ।               
            ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां फट् । 

 हृदयादिन्यासः                                   
            ॐ ह्रां हृदयाय नमः !                       
            ॐ ह्रीँ शिरसे स्वाहा !                         
            ॐ ह्रूं शिखायै वषट् !                           
            ॐ ह्रैं कवचाय हुम् !                             
            ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् !                     
            ॐ ह्रः अस्त्राय फट् !   

 । ध्यानम्:-             
            शवारूढाम् महाभीमां घोर दंष्ट्रा हसन्मुखीम् । चतुर्भुजां खड्ग मुण्ड वराऽभय करां शिवाम् । मुण्ड मालां              धरां देवीं ललज्जिह्वां दिगम्बराम् । एवं संचिन्तयेत् कालीं श्मशानालयवासिनीम् ।
           
 मन्त्र:- ''क्रीं दक्षिण कालिके स्वाहा''
           
            इस जप के उपरांत जप माँ दक्षिण कालिका जो समपर्ण करे .हो सके शतनाम व् कालिका अस्टक कवच              करे..कवच अनिवार्य..
           
            फिर माँ जिस पर विराजमान है महाकाल का ध्यान करे..व् जप करे..
           
 3. महाकाल मन्त्र:-  
            ''ह्सौः महाकालाय हूं फट्''

            और यह मन्त्र जप के उपरांत महाकाल की स्तुति करे..या रूद्राष्ट्क करे

           
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Thursday 22 March 2018

Ganpati Sadhna (गणपती साधना)


                                                                 गणपती साधना 

गणपती साधना एक दुर्लभ साधना है | कोई भी प्रकार के विघ्न हो तो आप गणेश 
जी कि साधना कर सकते है | गणेश जी बुद्धी कि देवता है तो परीक्षा मै अच्छे मार्क 
लाने हेतू विश्वास के साथ साधना करे |

YOUTUBE LINK -

https://www.youtube.com/watch?v=BB3xNk4AlTA&t=158s


चना - एक चौकी लेकर उसपर पिले या लाल रंग  का पीस रखे. उसपर 
     बीच मै ४ पंखुडी कि चावल से आकृती बनाये. उसके एक तरफ 
           पिले रंग के चावल  का स्वस्तिक  और दुसरी तरफ लाल रंग के
           चावल का स्वस्तिक निकाले. पिले रंग के स्वस्तिक के साथ ६ पिले 
           रंग कि सुपारी और लाल रंग कि तरफ ६ लाल रंग कि सुपारी.
           ४ पंखुडी कि आकृती मै गणपती जी को रखे और गणपती जी नही 
           हो तो सुपारी भी चलेगी.    

विधी - 
        संकल्प  केबाद   गणेशजी का पूजा अभिषेक, यंत्र और उसपर जो देवता है उनकी पूजा करे  
        (पुष्प,हलदी,कुमकुम,धूप,दीप,भोग) 
        पूजा होने के पश्च्यात जप शुरू करे
       जप होने के बाद आरती करके अगले दिन विसर्जन करे 
पूजा साहित्य - 
 - नारियल , २०- सुपारी , चावल , दीप , -चौकी , लाल वस्त्र , २५- विड्याची पाने , - खारीक , 
- बादाम, - छुट्टे पैसे , - जनेऊ  , हलदी ,कुमकुम , सिंदूर , अक्षत,  दुर्वा , पुष्प, भोग - मोदक 
       बुंद का लड्डू                
 न्यास
  ***कर न्यास***

        ॐ ह्रां गां अंगुष्ठाभ्यां नमः 
        ॐ ह्रीं गीं तर्जनीभ्यां नमः         
        ॐ ह्रूं गूँ मध्यमाभ्यां नमः 
        ॐ हैं गैं अनामिकाभ्यां नमः
        ॐ हौं  गौं  कनिष्टिकाभ्यां वौषट्
        ॐ ह्रः गः करतलकरपुष्टाभ्यां नमः 

।  अंग न्यास ।

        ॐ ॐ हृदायाय नमः         
        ॐ ग़लों शिरसे स्वाहा
        ॐ   गं   शिखायै वषट्
        ॐ गणपते कवचाय हुम्
        ॐ नमः नेत्रत्रयाय वैषट
        ॐ  ॐ ग्लौ गं गणपते नमः आस्राय फट्

। । ऋषादीन्यास ।।

        ॐ शिरसे
        ॐ ग्लोम् मुखे
        ॐ गं हॄदय         
        ॐ गणपते लिंगें 
        ॐ नमः नाभो
        ॐ ग़लों गं पादयोः
        ॐ ग़लों गं गणपतये नमः सर्वांगे

         ममसर्वकामनापुरत्यर्थे ज         जपे विनयोगाय नमः अज्जलो सर्वांगे ।

पञ्चोपचार पूजन 

        लं पृथ्वीतत्वात्मिकायै गणपतिदेव्ये गन्ध परिकल्पयामी ।       
        हं आकाशतत्वात्मिकाये गणपतिदेव्ये  पुष्पं परिकल्पयामि
        यं वायुतत्वात्मिकायै गणपतिदेव्ये धूपं परिकल्पयामि
        रं  वहीतत्वात्मिकायै गणपतिदेव्ये दीपं परिकल्पयामि
        वं जलतत्वात्मिकायै गणपतिदेव्ये नैवेदयं परिकल्पयामि
        सं सर्वतत्वात्मिकायै गणपतिदेव्ये सर्वोपचारां परिकल्पयामि

।। शाबर गणेश गायत्री ।।


  सत नमो आदेश । गुरूजी को आदेश । ॐ गुरूजी। ॐ सांचामन्त्र भजन महेश मूल महल में 
  बसे गणेश गुदा चक्र पद्म चक्र कर्लो   पाक हृद्धय परम् ज्योत प्रकाश गणपत स्वामी जी सन्मुख 
  रहो हृदय ज्ञान आगम से कहो ॐ सोहं सत्य का शबद,  कोई नर योगीश्वर विरला लहे ।
  उर्ध्वमुख वेद कहन्ते सर्वकमल मेँ फेर कराओ ईडा पिंगला सुखमना तीनो इक घर ल्याओ।
  बंक नाड बैठ कर आवो झिलमिल झिलमिल जोत जागीझिलमिल जोत झिन्कार बाजा बाजे 
  नाद बिन्द का हुवा मेला तत पिता  का हुवा मेला कहे श्रीनाथजी सुनो आघोड़पिर त्रिकुटी 
  समाध शिव सुन्न में लगाऊ नाद बिन्द की गांठ कर ब्राम्हाण्डि चढ़ जाऊ  आत्मा परमात्मा 
 का दर्शन घट भीतर पाऊ हंस परमहंस का दर्शन घट भीतर पाऊ गणेश का मन्त्र सचकर 
 ध्याउ मूल स्थान  चतृर्दल पंकड़ी तहाचतृर्दल मन्त्र का बासा तहा गणेश देवते का वासा गणेश
  देवता शक्ति स्वरूप मूसा वाहनगंगा गोदावरी करे स्न्नान कोई चढावे जान कोई चढावे 
 अनजान जान चढावे मोक्ष मुक्त फल पावे , अनजान चढावे अकार्थ जावे छे हजार 
 जप सुमेर यज्ञ किये का फल तिन हजार जप की पूजा, इतनीगणेश गायत्री जाप सम्पूर्णं भया। 
 आनन्त कोट सिद्धों में श्रीशम्भुजती गुरु गोरक्षनाथजी ने कहा। धुप दिप नैवद्य् कुसुम सूत्र तिलक 
  अक्षिद पुष्प फल दक्षिणा सहित पूजयामि ।

        मंत्र - ॐ  गं गणपतये नमः

        साधना काल  - ४५ मिनट से .३० घंटे तक         
        समय   - सवेरे /संध्याकाल मै २१ दिन ,सिद्ध होनेके पश्चात् हर महीने के चतुर्थी  को करे .
        साधना काल मै उपवास का कोई बंधन नही है 

अधिक जानकारी के लिए संपर्क -

  संस्थापक -           शंकरनाथ (महाराष्ट्र ) ९४२०६७५१३३.
 अधिकृत प्रवक्ता - नंदेशनाथ (महाराष्ट्र )  ८८५६९६६४८०.

श्राद्ध न करनेसे हानि

अपने शास्त्रने श्राद्ध न करनेसे होनेवाली जो हानि बतायी है, उसे जानकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। अतः आद्ध-तत्त्वसे परिचित होना तथा उसके अनुष्ठा...