काली बिजात्मक साधना
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''ॐ अस्य आसन मन्त्रस्य, मेरु पृष्ठ ऋषिः, सुतलम छंदः,
कुर्मो देवता आसनाभिमंत्राने विनियोगः । ''
इस मंत्र का जप करते हुए आसन पर बैठे-
''ॐ ह्रीं पृथ्वी त्वया धृता लोका, देवि त्वं विष्णुना धृता च ।
त्वं धारण मां देवि, पवित्रं कुरु च आसनं ।।''
तब आसन पर उत्तराभिमुख होकर बैठे, आचमन करे ।
ऊँ ह्रीं आत्मतत्वाय स्वाहा ।
ऊँ ह्रीं विद्यातत्वाय स्वाहा ।
ऊँ ह्रीं शिवतत्वाय स्वाहा ।
इसके बाद पवित्रीकरन करे
ऊँ अपवित्रः पवित्रोवा सर्वावस्थाङतोऽपिवा ।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाछं स बाह्याभ्यन्तरःशुचिः ।।
तत्पश्चात शिखा बन्धन करे ।
ऊँ मणिधरि वज्ज्रिणिमहाप्रतिसरे रछ रछ हूँ फट् स्वाहा !!
दिग्बन्धन:
अपनी बायीं हथेली में जल या लाल अक्षत और लेकर दायीं हथेली से ढकले और इस मन्त्र का जप करे-
''ॐ ह्रीं अपसर्पन्तु ते भूता, ये भूता भुवि संस्थिता ।
ये भूता विध्न कर्तारस्ते नशयन्तु शिवाज्ञया ।।''
ॐ ह्रीं. सर्व विघ्नानुत्सारय रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा..
दिशाबन्धन:
बाए हाथ की हथेली में पीली सरसो को दाए हाथ से ढककर इस मन्त्र का 3 बार जप करे और फिर चारो
दिशाओ में फैक दे -
''ॐ शत्रुनां ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ह्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं भंजय भंजय नाशय नाशय दिशा रक्ष रक्ष फट्'' ।
भूतशुद्धि:-
दायीं नासिका से श्वास खींचकर-
''ह्रीं मूलश्रृङ्गाटकात् सुषुम्नापथेन् जीवशिवं परमशिवे योजयामि स्वाहा''
बोलकर जीव शिव को ब्रह्मरन्ध्र में स्थापित करे और एकीकरण की भावना करतेहुए
बायीं नासिका से श्वास छोड़ दे । पुनः ''यं'' बीज से बायीं नासिका से पूरक करे और ''सङ्कोचशरीरं शोषय शोषय स्वाहा''
बोलकर दायीं नासिका से श्वास छोड़ते हुए भावना करे की संकोच शरीर का शोषण हो गया है ।
पुनः ''रं'' बीज से दायीं नासिका से पूरक करे और
''सङ्कोचशरीरं दह दह पच पच स्वाहा''
बोलकर बायीं नासिका से श्वास छोड़ते हुए भावना करे कि- संकोच शरीर का दहन हो गया है ।
पुनः ''वं'' बीज से बायीं नासिका से पूरक करे और
''परमशिवामृतं वर्षय वर्षय स्वाहा''
बोलकर दायीं नासिका से श्वास छोड़ते हुए भावना करे कि- जले हुए पाप शरीर की भस्म सहस्त्रार से निकले हुए अमृत से आप्लावित हो गई है ।
पुनः ''लं'' बीज से दायीं नासिका से पूरक करे और
''शाम्भवशरीरमुत्पादयोत्पादय स्वाहा''
बोलकर बायीं नासिका से श्वास छोड़ते हुए भावना करे कि- मेरा शरीर दिव्य हो गया है ।
पुनः ''ह्रीं'' बीज से बायीं और से पूरक करे और
''शिवशक्तिमयं शरीर कुरु कुरु स्वाहा''
बोलकर दायीं और से रेचक करते हुए भावना करे कि-मेरा दिव्य शरीर शिवशक्तिमय हो गया है ।
पुनः ''हंसः सोहं'' से दायीं और से पूरक करे और
''अवतर अवतर शिवपदात् जीव सुषुम्नापथेन प्रविश मूलश्रृंगाटक मुल्लसोलस ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल हंसः सोहं स्वाहा''
बोलकर बायीं ओर से रेचक करते हुए भावना करे कि- शिव के साथ सहस्त्रार में जो जीवात्मा स्थापित किया था, वह सुषुम्ना मार्ग से पुनः मूलाधार में स्थित हो गया है ।
अब गुरु का ध्यान करें !!
ऊँ गुरुर्ब्रम्हा गुरुर्विष्नु गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुर्साछात्परब्रम्ह तस्मै श्री गुरुवे नमः !!
इसके बाद माला मन्त्र से माला को प्रनाम करे माम्माले महामाले प्रत्यक्ष शिव रूपिणी !
चतुवॆगॆस्त्वयि न्यस्तस्तमाने सिद्धिदा भव !!
ऊँ ह्रीं गं अविध्नम् कुरु माले जप काले तु सर्वदा ! निर्विघ्न्म् कुरु देवेशि दन्त माले नमोस्तुते !! 1. जप शुरू करें 2 माला :-
''ऐं गुरुभ्यो नमः.
जप फल को माला को सिर पर रखकर दायें हाथ की मुट्ठी बँधी हुयी हृदय से हाथ लगा कर गुरु को
जपसमर्पित करे ।
ॐ गुह्यातिगुह्यगोप्त्रा त्वं गृहाणास्मत्कृतम्जपम् !!
सिद्धिर्भवतु मे देव / देवि तवत्प्रसादान्महेश्वरः !!
2. इस के बाद दायें हथ में जल लेकर निम्न विनियोग पढें:-
विनियोगः-
ॐ अस्य श्री मद्दक्षिणकालिका मंत्रस्य श्री महाकाल भैरव ऋषिः उष्णिक छन्दः श्रीमद् दक्षिणकालिका देवता, ह्रीं बीजम्, हूँ शक्तिः, क्रीं कीलकं, श्री मद् दछिण कालिका प्रीतये जपे विनियोगः ।
( जल गिरा दें )
ऋष्यादिन्यासः
श्री महाकाल भैरव ऋषये नम: शिरसि ।
उष्णिक छन्दसे नमः मुखे ।
श्री मद्दक्षिणकालिका देवतायै नमः हृदि ।
ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये ।
हूँ शक्तये नमः पादयो ।
क्रीं कीलकाय नमः नाभौ ।
श्रीमद्दक्षिणकालिका प्रीतये जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।
करन्यास:
ॐ ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रीं तर्जनिभ्यां स्वाहा ।
ॐ ह्रूं मध्यामाभ्यां वषट् ।
ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां हुम् ।
ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां वौषट् ।
ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां फट् ।
हृदयादिन्यासः
ॐ ह्रां हृदयाय नमः !
ॐ ह्रीँ शिरसे स्वाहा !
ॐ ह्रूं शिखायै वषट् !
ॐ ह्रैं कवचाय हुम् !
ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् !
ॐ ह्रः अस्त्राय फट् !
। ध्यानम्:-
शवारूढाम् महाभीमां घोर दंष्ट्रा हसन्मुखीम् । चतुर्भुजां खड्ग मुण्ड वराऽभय करां शिवाम् । मुण्ड मालां धरां देवीं ललज्जिह्वां दिगम्बराम् । एवं संचिन्तयेत् कालीं श्मशानालयवासिनीम् ।
मन्त्र:- ''क्रीं दक्षिण कालिके स्वाहा''
इस जप के उपरांत जप माँ दक्षिण कालिका जो समपर्ण करे .हो सके शतनाम व् कालिका अस्टक कवच करे..कवच अनिवार्य..
फिर माँ जिस पर विराजमान है महाकाल का ध्यान करे..व् जप करे..
3. महाकाल मन्त्र:-
''ह्सौः महाकालाय हूं फट्''
और यह मन्त्र जप के उपरांत महाकाल की स्तुति करे..या रूद्राष्ट्क करे
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अधिकृत प्रवक्ता - नंदेशनाथ (महाराष्ट्र ) ८८५६९६६४८०.
Its very good blog for those who want to get knowledge of pooja and meditations and while doing sadhna thet will also get information about guru goraksh nath the maha guru. Thanks for such blog to help out every body.
ReplyDeleteकाली माता की साधना करने से मेरे जीवन के बहुत से दुःख और दुविधा दूर हुये है। ये साधना हर दिन 3.30 घंटे करने से काली माताजी का आशीर्वाद और शक्ती हमारे सात राहेगी ये मेरा अनुभव है।
ReplyDeletewaah
Deleteसाधना का अनुभव विस्तार मैं बताए
ReplyDeleteI am doing Bagalamukhi Sadhana and it has started giving me immediate results in my business. I am witnessing the sudden growth and stability.
ReplyDeleteअद्भुत अनुभव येत आहेत।
ReplyDeleteअश्या दुर्लभ साधना सांगितल्या बद्दल धन्यवाद।
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ReplyDeleteBahot achi sadhana hai. Eise bade vistar purvak samazhaya hai
ReplyDeleteप्रभावी साधना खूप मस्त effect मिळाला
ReplyDeleteati uttam
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