पितृ साधना
साधना सामग्री ...
1) दाभ , घास कि लकडी कुशा
2) जौ , (अक्षत)गेहूँ का अंश जो गेहूं मे पाया
जाता है
3) काले तिल
4) गोपीचंदन
5) तुलसी
6) फुल (सफेद रंग के)
7) बिना नमक उबले हूय चावल
8) धूप
9) दीप
(सात तरह के अनाज को पिसकर बनाया गया आटा )
से बनाय गये गोले को पिंड कहते है
दिपक तिन तरहके जलाये
1) घी का दीपक == सफेद फूल
2) तिल
==पिला फूल
3) सरसो ==
लाल फूल
अगर पितृदोष बहुत ही प्रखर हो तो साल की बारह
अमावस्या को पितृपक्ष सहित करना अनीवार्य है
पितृ को पूजन के लिये आवाहन करने का समय
.. 10.34 से 12.30
बाद भोजन
रात मे भोजन निशिद्ध
पिंड बनाने की विधि
1) अमावस्या के1दिन का अमरुद के
फल जीतना बडा पिंड याने गोला बनाए
2) वर्ष श्राद्ध के दिन नारीयल जीतना बडा गोला
बनाए
3) हर अमावस्या के दिन चिकू फल जीतना छोटा
पुष्प
1)सफेद
2)मालती
3)जुई
4)चंपा
5)कमल
6)धतुरा
श्राद्ध के लिये निषिद्ध
उपवास रखना चाहिए
प्रवास वर्जित
परिश्रम
बाहर कीसी के घरका भोजन
रात मे भोजन
हवन ना करें
सप्तधान
1)जवस (आलसी)
2)गेहूं
3)ज्वार
4)तिल
5)मुंग
6)चना
7)चावल
संकल्प -
ॐ विष्णु र्विष्णु र्विष्णु: नम: परमात्मने पुरुषोत्तमाय ॐ तत्सत अदैतस्य
विष्णोराज्ञया जगत्सुष्टिकर्मणि प्रवर्तमानस्य ब्राम्हणों द्वितीय परार्द्धे
श्रीश्वेतवराहकल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविशतितमे कलियुगे तत्प्रथमचरने
जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखंडे *क्षेत्रे बौद्धावतारे *सवत्सरे उत्तरायंणे / दक्षिणायने *ॠृतो *मासे *पक्षे * तिथो
*वासरे *गोत्र:----शर्मा / वर्मा – गुप्तोऽहम **गोत्रस्य अस्मत्पितु:
क्षुधापिपासानिवृत्तिपूर्वकमक्षयतृप्तिसम्पादनाथॅँ ब्राम्हणभोजनात्मक सकल्पिक श्राद्धं पञ्चबलिकर्म च करिष्ये | संकल्पजल
छोड़ दे |
बीज माला (मन्त्र)
सत नमो आदेश | गुरुजी को आदेश |
ॐ
गुरुजी | ॐ अंगुष्ट प्रमाणे तीसरा नेत्र त्रिकुटी मै ठहराया सिद्धो काया न
माया धूप न छाया बजर कुवारी तीन लोक की माया , जहा ठहराई मारग
मार्ग आवे मार्ग कि छाया , अमार्ग का पुत्र बाला काह्लाया जब सिद्धो गोरक्षनाथजी ने गोरक्षबाला कह्लाया |
ॐ
सोह हमारी माया , एता बीज बाला जाप सम्पूर्ण भया अनन्त कोट
सिद्धो मै श्री शंभूजती गुरु गोरक्षनाथजी ने कहा | ॐ नमो आदेश |
सत
गुरुजी को , ॐ निरंन्जन
निराकार अवगत पुरुष ततसार ततसार मध्ये ज्योत , ज्योत मध्ये परम
ज्योत , परम ज्योत मध्ये उत्पन्न भई माता शम्भू शिव गायत्री विश्वनी
विश्वमूर्ती पाताले ग्रहणी चतुर्वेदी मुखो दृष्टवा गंगा जमना देखे चन्द्रमा इति
देवता ललाटे नक्षत्र मेष कि माला दृष्ट श्रृडग मेरू मेखला हिर्दे तैतीस करोड देवता
कुक्षौ सप्त समुद्र सागरा रोमावली ते अठ्ठारा भार वनस्पती के चार खाणी , चार
बाणी चन्द्र सुर्ज पवन पाणी धर्ती आकाश पंच तत पिंड प्राण ले किया निवास सून
निरालम्ब दिया निवास , यती
निरालम्ब जी के चरण कमल पादका को नमस्कार नमाम्यहम अं निरालम्ब निराकार अवगत पुरुष
तत सार तत सार मध्ये जोत जोत मध्ये परम जोत मध्ये परम जोत परम जोत मध्ये उत्पन्न
भई माता शंभु अजपा नाम गायत्री अभेद मण्डल
भिदन्ति अछेद पाप अक्षय पोष करन्ती अपीर नीर पिवन्ति गंगा जमना मध्ये जलन्ति बचने
बचने रूद्र ॠषिवर की वाचा प्रति पालयन्ति ॐ सप्त मैं पाताल खरी , क्षेचरी
, मंचरी, भूचरी , सिद्द्धा आपसे
थापी सोहं हंती महंती जति निरालम्ब जी के चरण कमल पादका को नमस्ते नामम्यहम ॐ
प्रभाते उत्पन्न भई माता शम्भू शिव गायत्री , रक्त वर्णीवृष
वाहिनी रूद्र देवता की पोषनी ॠद्ध सिद्ध वर दायिनी , ॐ मध्याने
उत्पन्न भई माता शम्भू शिव गायत्री स्वेत वर्णी हंस वाहिनी ब्राम्हदेवता को
पोषणी ॠद्ध सिद्ध वर दायिनी , ॐ
संध्या उत्पन्न भई माताशम्भू शिव गायत्रीश्यामवर्णी गरुड वाहिनी शंख चक्र गदा पद्म
ले विष्णू देवता को पोषणी ॠद्ध सिद्ध वर दायिनी फुरो तां ॠद्ध फुरो तांसिद्ध
ईश्वरो वाचा जो जोगनी अजरन्त जो जोगनी बजरन्त षट सरस बरस कि रक्षा उद्धारन्त ,
होमी
शिव होमी शक्त होमी घटे शिव होमी चतुर्मुख ब्रम्हा बोलिये , हिर्दे ते स्थान
मुँह भूज शंखिनीदेवी विष्णू देवता को पोषणी ॠद्ध सिद्ध वर दायिनी ,ॐ
जल , जल पर थल, थल पर भौर नदी , भौर नदी पर भौर
गुफा , भौर गुफा पर शिवपुरी , शिवपुरी पर शिवताजपुरी , शिवताजपुरी पर
ब्रह्मकमल , ब्रह्मकमल पर निरन्जन कमळ , निरंजन
कमळ मध्ये उत्पन्न भई माता शम्भू शिव गायत्री अभेद मण्डल भिदन्ति |
ॐकार करन्ती आवे इकोतर सौ पुरुषा ले अमरापुर
जावे सोहंकार करन्ति आवे लख चौरासी जीया जून को ले अहार चोगा पानी पिलावे क्षिर
निरनू पंच बस करनी आवे जपंत ब्रम्हा विष्णु जल पवन पानी षट दर्शन मध्ये गुरु खड़ा
हाथ खड्ग त्रिधारा क्या करेगा रूठा जगत हमारा चार चरण पंजवा मुख अन्न महिश्वर जोगी
अनन्त कोट सिद्धा को पार ले उतरेगी माता शम्भू शिव गायत्री श्री नाथजी को चरण कमल
पादका को नमस्ते नमस्कारम: ॐ चार वेद
ब्रम्हा पढ़े दस हज़ार योजन सुमेरु धरती मै गड़े साठ कोस लौ पौड़ी लोह की जा: बैठीरा:
क्रेत की चौकी क्या चीज बिना भेद वस्त्री, साठ कोस लग रगड जस्त की क्या जमना जी
मै रुख वृक्ष डाल कड़ी बांस की क्या दाता ने ऐसी बनाई बासठ कोस धारा तांबे की ताके
उपर ले काने खड़े गौरी पुत्र गणेश , हाथ मै लई छड़ी साठ कोस रुपे सों जड़ी
ताके उपर ले काने खड़े सप्तपुरी सोने सों जड़ी सोलह लाख बहत्तर हज़ार हीरे लाल जड़ी
जवाहर जा: पंच तत्व तीनो गुण न्यारो न्यारो छै: दर्शन छानवै पखंड नौग्रह त्रय सध्यया चौबीस गायत्री ,
एते प्रमाने किस विधि जागो ससमाले चक्र ताणे दरवाजे
ध्रुव की चौकी बठाने तिसके निचे ले काने लाय तारे चन्द सुर्ज दो बने खिलारे जहा आठ
कुण्ड बिसो न्यारे न्यारे जा मै कीड़े फिर रहे काग करे फटकारे केती आवे केती जावे
केती भरीयम के द्वारे , यम द्वारे यम राणी बैठी , ब्रम्हा
विष्णु महेश्वर ली एती इस पर्वत गब्बे सिद्धो अमृत कुण्ड भरिया भर भर आवे बदल मपडे
इन्द्र के आघाय मृत लोक से पौचे मुहडा दिन सू
रात पुतला दस महीने दौड़े इति सुमेरू पाद का मन्त्र सम्पूर्ण भया | श्री
नाथजी गुरूजी को आदेश | आदेश || आदेश |
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
संजीवनी बाला
जीस तिथि को मृत्यु हुआ है उस तिथि पर पितृपक्ष
मे उपरोक्त मन्त्र का 51 बार जाप करें
पितृपक्ष मे 7 पिंड बनाकर उसे
मन्त्रोपचार से तर्पन किजिय पितृ कि मुक्ति होगी ।।
आदेश आदेश श्री नाथजी गुरुजी कु आदेश ।।
मन्त्र –
सत नमो
आदेश | गुरुजी को आदेश | ॐ गुरुजी | ॐ शून्य आकाश ,
शून्य
धरती , शून्य ज्योती प्रकाश | ओं सोहम संजिवन काया बिच जम यम का फास |
गुरु
अविनाशी खेल रचाया | तंतर संजोगी संजिवन बाला | फुरो
मन्तर जती गोरख बाला | हिर्दे हिले गिद चालन देखो सिद्धो चले पुतला |
कहा
से आया कहा को जाना कौन पुरुष ने दिनी छाया | अगम आया निगम को
जाना, गुरु अविनाशी ने दिनी छाया , घटे आकाश घटे पाताल गत गंगा भरपूर
चन्दसुर दो साख भरे सिद्ध के मुख से बरसे नूर , आओ अवधू शंख
ढरे शिव पुजिये प्राणी पावे मोक्ष द्वार |
ॐ
मृत्युंजयाय विद्महे संजीवनबालाय धी मही तन्नो संजिवनी प्रचोदयात
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
मोक्ष गायत्री - /n/n
यह मन्त्र पितृ पक्ष अमवस्या के दिन अपने
पूर्वजो के नाम सप्त अनाज आटे के पिण्ड बनाकर उतने की घी ज्योत लगाये , पूजन
करे , मिटटी के मटके में गंगा जल पंचामृत सन्मुख रखे ? इस
मन्त्र का १५१ बार प्रात: जप करे और शंख द्वारा पिण्डो को ५-५ बार जल चढ़ाये ?
उन्हें
खीर , हलवा, पुड़ी , इत्यादी पंचपकवान का भोग लगाये |
कौवो
,यजमान या साधू-को भोग वस्त्र देवे | वस्त्र दान करे |
पितृ
घर , मकान को छोड़कर मुक्ति को जायेंगे तथा पितृ दोष नही रहेगा |
मन्त्र -
सत नमो आदेश | गुरूजी को आदेश |
ॐ
गुरूजी | ॐ सों का सकल पसारा , अक्षय योगी सबसे न्यारा | सद्राला
तोड़ चौदह चौकी यम की तोड़ हंसा ल्याऊ मोड़ हंसा तो ला कहा धरे अलष पुरुष की सीम , हंस तो निर्भय भया काल गया सिर फोड़ निराकार के जोत मै
रती न खणड़ी हो , कौन कौन साधू भया ब्रम्हा विष्णु महेश ,
वे
साधू ऐसे भये यम ने पकडे केश , मोक्ष गायत्री जाप सम्पूर्ण भया |
श्री
नाथजी गुरूजी को आदेश | आदेश | आदेश |
🙏🙏
ReplyDeleteअतिशय छान माहिती
ReplyDeleteविस्तृत स्वरूपात वर्णन केले आहे. धन्यवाद आपले ह्या कार्य साठी
ReplyDeleteNice info
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