Saturday, 22 July 2023

तिथी आणि साधना भाग -1

तिथी आणि साधना भाग -1
आपण जी साधना करतो तिचा आणि तिथीचा कसा थेट संबंध आहे ते आज पाहू. सुरुवात अमावस्या तिथी पासून करू.. 
बरेचदा उग्र देवतांच्या साधनेची सुरुवात अमावस्या पासून करायला सांगितली जाते.. याच कारण हेच आहे की अमावस्येला चंद्रबळ नसते.  चंद्रबळ नसणे आणि उग्र साधना दैवत यांचा थेट संबंध आहे.  चंद्रबळ हे सौम्यतेच प्रतीक आहे. चंद्राचा प्रकाश हा शीतलता देतो. त्यामुळे अमावस्येला त्याच्या अभाव असल्याने उग्रतेने किंवा अधिकच्या तीव्रतेने एखादी गोष्ट शक्य होते. उग्र साधना दैवतला दिलेला आवाज थेट पोहचतो. सुरुवातीपासूनच जर ती तीव्रता / उग्रता साधनेत आली तर प्रचंड ऊर्जा तयार होते आणि ती ऊर्जा त्या साधनेला अधिकच बळ देऊन जाते. 
चांगली सुरूवात आपल्याला अर्ध यश सुरुवातीलाच देऊन जाते असं म्हणतात. म्हणून ठराविक वेळेस ठराविक गोष्टी सुरू करायला सांगितल्या जातात.  
अनेकानेक महत्वाचे सण सुद्धा अमावस्येला असतात त्याच कारण पण तेच आहे. सूर्य हा तसाच असतो, त्याची तीव्रता तशीच असते. पण चंद्राचे बदलते स्वरूप तिथी ठरवत असते. 
भरती - ओहोटी वर ज्याप्रकारे चंद्रबळ परिणाम करते तसेच ते साधना सुद्धा नियंत्रित करते. 
या वेळी वाईट शक्तींची ताकद अनेकपटींनी वाढलेली असते, आणि त्यावर मात करण्यासाठी सुद्धा उग्र साधनेची त्यावेळेस आवश्यकता असते. काही ठराविक साधनेला किंवा कृतीला चंद्रबळची अजिबात आवश्यकता नसते म्हणून त्या अमावस्येला सांगितल्या जातात. पिढ्यन्पिढ्या काही गोष्टी अमावस्येला केल्या जातात. त्याचे सुद्धा हेच कारण आहे. उदा. पितृसाधना जास्तीत जास्त अमावस्येलाच करतात. आपण करत आहोत त्यावर पूर्ण विश्वास ठेऊन पूर्णत्वास नेणे गरजेचे असते. 


प्रसन्न कुलकर्णी

Wednesday, 19 July 2023

6 तरह की भूत बाधा

6 तरह की भूत बाधाओं को जानिए
आज के वैज्ञानिक युग में भूत-प्रेत और पारलौकिक शक्तियों से जुड़ी घटनाओं पर कोई विश्वास नहीं करता। ऐसी घटनाओं के पीछे कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता, लेकिन लोग इन्हें सच मानते हैं। बहुत से लोगों को भूत बाधा से ग्रसित माना जाता है और इसके लिए वे उन्हें किसी बाबा की मजार या समाधि पर ले जाते हैं, जहां उनकी भूत बाधा को दूर किया जाता है।

भूत के प्रकार : हिन्दू धर्म में गति और कर्म अनुसार मरने वाले लोगों का विभाजन किया है- भूत, प्रेत, पिशाच, कूष्मांडा, ब्रह्म राक्षस, वेताल और क्षेत्रपाल। उक्त सभी के उपभाग भी होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार 18 प्रकार के प्रेत होते हैं। भूत सबसे शुरुआती पद है या कहें कि जब कोई आम व्यक्ति मरता है तो सर्वप्रथम भूत ही बनता है।

इसी तरह जब कोई स्त्री मरती है तो उसे अलग नामों से जाना जाता है। माना गया है कि प्रसूता, स्त्री या नवयुवती मरती है तो चुड़ैल बन जाती है और जब कोई कुंवारी कन्या मरती है तो उसे देवी कहते हैं। जो स्त्री बुरे कर्मों वाली है उसे डायन या डाकिनी कहते हैं। इन सभी की उत्पति अपने पापों, व्यभिचार से, अकाल मृत्यु से या श्राद्ध न होने से होती है।

भूत-प्रेत बाधाओं, जादू-टोनों आदि के प्रभाव से भले-चंगे लोगों का जीवन भी दुखमय हो जाता है। ज्योतिष तथा शाबर ग्रंथों में इन बाधाओं से मुक्ति के अनेकानेक उपाय उपाय बताए गए हैं।

भूत पीड़ा : बहुत से लोग भूत पीड़ा से ग्रस्त रहते हैं। भूत पीड़ा की प्रारंभिक अवस्था में व्यक्ति या तो अत्यधिक क्रोधी और चिड़चिड़ा रहेगा या फिर अत्यधिक शराब का सेवन करने वाला होगा।

भूत पीड़ा से पूर्ण रूप से ग्रस्त व्यक्ति किसी विक्षिप्त की तरह बात करता हुआ नजर आता है। मूर्ख होने पर भी उसकी बातों से लगता है कि वह कोई ज्ञानी व्यक्ति है। उसमें गजब की शक्ति आ जाती है। क्रुद्ध होने पर वह कई व्यक्तियों को एकसाथ पछाड़ सकता है। उसकी आंखें लाल हो जाती हैं और उसकी देह कांपती रहती है।

यक्ष पीड़ा : लाल रंग में अत्यधिक रुचि लेने के दो मतलब हो सकते हैं पहला यह कि या तो आप मानसिक रूप से पीड़ित हैं और दूसरा यह कि आप यक्ष नामक आत्मा के प्रभाव से ग्रस्त हैं। यक्ष प्रभावित व्यक्ति ही लाल रंग के वस्त्र में रुचि लेने लगता है।

ऐसे व्यक्ति की आवाज धीमी, लेकिन चाल तेज हो जाती है। इसकी आंखें तांबे जैसी दिखाई देने लगती हैं। वह ज्यादातर आंखों से इशारा करता है। ऐसा व्यक्ति अधिकतर समय मौन रहता है और बहुत सारा खाना खाता है और घंटों एक ही जगह देखता रहता है।

पिशाच पीड़ा : पिशाच ‍पीड़ा के शुरुआती लक्षण ये हैं कि व्यक्ति स्नान आदि से दूर रहने लगता है। भोजन, संभोग या मदिरा का अधिक सेवन करता है। रात और दिन दोनों समय सोता रहता है। लेकिन जब व्यक्ति पिशाच से पूरी तरह प्रभावित हो जाता है तब वह नग्न रहने से भी नहीं हिचकता है।

ऐसा व्यक्ति धीरे-धीरे कमजोर होता जाता है तथा सदा कटु शब्दों का प्रयोग करता है। वह गंदा रहता है और उसकी देह से दुर्गंध आती है। ऐसा व्यक्ति खूब खाता है और एकांत में रहना पसंद करता है। वह अकेले में ही रोने लगता है।

शाकिनी पीड़ा : शाकिनी या डाकिनी से आमतौर पर महिलाएं पीड़ित रहती हैं। शाकिनी से प्रभावित स्त्री क ो संपूर्ण देह में दर्द बना रहता है। उसकी आंखों में भी सदा पीड़ा होती रहती है। वह अक्सर बेहोश भी हो जाया करती है।

जब शाकिनी का प्रकोप बढ़ जाता है तो ऐसी महिलाएं रोने और चिल्लाने लगती हैं और कांपती रहती हैं। जब पीड़ा और बढ़ जाती है तो महिला की मौत भी हो सकती है ।

चुडैल पीड़ा : चुड़ैल के चंगुल में महिला के अलावा पुरुष भी हो सकता है। चुड़ैल से ग्रस्त व्यक्ति अत्यधिक शंकालु और संभोगी बन जाता है। ऐसे व्यक्ति का शरीर हष्ट-पुष्ट हो जाता है।

चुड़ैल प्रभावित व्यक्ति हमेशा मुस्कराता रहता है और मांस, मछली या अत्यधिक तामसिक भोजन खाना पसंद करता है। गंदे से गंदे लोगों के बीच रहकर वह खुश रहता है।

हिन्दू धर्म में भूतों से बचने के अनेक उपाय बताए गए हैं। पहला धार्मिक उपाय यह कि गले में ॐ या रुद्राक्ष का लॉकेट पहनें, सदा हनुमानजी का स्मरण करें, प्रतिदिन हनुमान बाण पढ़ें। चतुर्थी, तेरस, चौदस और अमावस्या को पवित्रता का पालन करें। शराब न पीएं और न ही मांस का सेवन करें। सिर पर चंदन का तिलक लगाएं। हाथ में मौली (नाड़ा) अवश्य बांधकर रखें।

घर में रात्रि को भोजन पश्चात सोने से पूर्व चांदी की कटोरी में देवस्थान पर कपूर और लौंग जला दें। इससे आकस्मिक, दैहिक, दैविक एवं भौतिक संकटों से मुक्त मिलती है।

प्रेत बाधा दूर करने के लिए पुष्य नक्षत्र में धतूरे का पौधा जड़ सहित उखाड़कर उसे ऐसा धरती में दबाएं कि जड़ वाला भाग ऊपर रहे और पूरा पौधा धरती में समा जाए। इस उपाय से घर में प्रेतबाधा नहीं रहती।

हिन्दू धर्म में भूतों से बचने के अनेक उपाय बताए गए हैं। पहला धार्मिक उपाय यह कि गले में ॐ या रुद्राक्ष का लॉकेट पहनें, सदा हनुमानजी का स्मरण करें, प्रतिदिन हनुमान बाण पढ़ें। चतुर्थी, तेरस, चौदस और अमावस्या को पवित्रता का पालन करें। शराब न पीएं और न ही मांस का सेवन करें। सिर पर चंदन का तिलक लगाएं। हाथ में मौली (नाड़ा) अवश्य बांधकर रखें।

घर में रात्रि को भोजन पश्चात सोने से पूर्व चांदी की कटोरी में देवस्थान पर कपूर और लौंग जला दें। इससे आकस्मिक, दैहिक, दैविक एवं भौतिक संकटों से मुक्त मिलती है।

प्रेत बाधा दूर करने के लिए पुष्य नक्षत्र में धतूरे का पौधा जड़ सहित उखाड़कर उसे ऐसा धरती में दबाएं कि जड़ वाला भाग ऊपर रहे और पूरा पौधा धरती में समा जाए। इस उपाय से घर में प्रेतबाधा नहीं रहती।

हिन्दू धर्म में भूतों से बचने के अनेक उपाय बताए गए हैं। पहला धार्मिक उपाय यह कि गले में ॐ या रुद्राक्ष का लॉकेट पहनें, सदा हनुमानजी का स्मरण करें, प्रतिदिन हनुमान बाण पढ़ें। चतुर्थी, तेरस, चौदस और अमावस्या को पवित्रता का पालन करें। शराब न पीएं और न ही मांस का सेवन करें। सिर पर चंदन का तिलक लगाएं। हाथ में मौली (नाड़ा) अवश्य बांधकर रखें।

घर में रात्रि को भोजन पश्चात सोने से पूर्व चांदी की कटोरी में देवस्थान पर कपूर और लौंग जला दें। इससे आकस्मिक, दैहिक, दैविक एवं भौतिक संकटों से मुक्त मिलती है।

प्रेत बाधा दूर करने के लिए पुष्य नक्षत्र में धतूरे का पौधा जड़ सहित उखाड़कर उसे ऐसा धरती में दबाएं कि जड़ वाला भाग ऊपर रहे और पूरा पौधा धरती में समा जाए। इस उपाय से घर में प्रेतबाधा नहीं रहती।हिन्दू धर्म में भूतों से बचने के अनेक उपाय बताए गए हैं। पहला धार्मिक उपाय यह कि गले में ॐ या रुद्राक्ष का लॉकेट पहनें, सदा हनुमानजी का स्मरण करें, प्रतिदिन हनुमान बाण पढ़ें। चतुर्थी, तेरस, चौदस और अमावस्या को पवित्रता का पालन करें। शराब न पीएं और न ही मांस का सेवन करें। सिर पर चंदन का तिलक लगाएं। हाथ में मौली (नाड़ा) अवश्य बांधकर रखें।

घर में रात्रि को भोजन पश्चात सोने से पूर्व चांदी की कटोरी में देवस्थान पर कपूर और लौंग जला दें। इससे आकस्मिक, दैहिक, दैविक एवं भौतिक संकटों से मुक्त मिलती है।

प्रेत बाधा दूर करने के लिए पुष्य नक्षत्र में धतूरे का पौधा जड़ सहित उखाड़कर उसे ऐसा धरती में दबाएं कि जड़ वाला भाग ऊपर रहे और पूरा पौधा धरती में समा जाए। इस उपाय से घर में प्रेतबाधा नहीं रहती।

मनोज कुमार

Tuesday, 18 July 2023

मनुष्य शरीर - 3 नाड़ियाँ

मनुष्य के शरीर में
मुख्य तीन नाड़ियाँ होती हैं!
1) इड़ा नाड़ी
2) पिंगला नाड़ी
3) सुषुम्ना नाड़ी
ये तीनो नाड़ियाँ एक वक्र पथ में मेरूदंड से होकर जाती है और सात बार एक दूसरे को काटती हुई पार करती हैं! जहाँ पर नाड़ियाँ एक दूसरे को काटती है, उस स्थान को 'प्रतिच्छेदन बिंदु' कहते हैं! इन्ही प्रतिच्छेदन बिंदुओं पर, नाड़ियाँ ब्रह्मांड की किरणों के साथ मिलकर एक शक्तिशाली ऊर्जा का केंद्र बनाती है, जिसे 'चक्र' कहते है!

मनुष्य के शरीर में मूल रूप से 7 सात चक्र होते हैं!
1)मूलाधार चक्र
2)स्वाधिष्ठान चक्र
3)मणिपुर चक्र
4)अनाहत चक्र
5)विशुद्धि चक्र
6)आज्ञा चक्र व
7)सहस्त्रार या सहस्त्रदल या ब्रह्मचक्र
यह चक्र मानव शरीर के मेरूदंड में होते है, और इन्ही चक्रों को शरीर की समस्त दिव्य शक्तियों का केंद्र माना जाता है!

तो आज से हम क्रमशः इन्ही चक्रों के रहस्यों पर चर्चा शुरू करते है! जो कि मूलाधार चक्र से सहस्त्रार चक्र तक स्थूल रूप में ना ही दिखाई देते हैं और ना ही महसूस होते हैं, (जब तक कि इन चक्रो को जाग्रत ना कर लिया जाये) क्योकि शरीर में इनका निवास सूक्ष्म रूप में होता हैं!

हर चक्र के जागने से शरीर में एक विशेष दिव्य ऊर्जा का संचरण होता है! चक्र ध्यान करते समय जब ब्रह्मांड की किरणों से ऊर्जा निकल कर इन चक्र केंद्र पर पड़ती है, तब शरीर के भीतर इन चक्र केंद्रों से एक विशेष दिव्य ऊर्जा उत्पन्न होती हैं! जो मूलाधार चक्र से ऊपर की तरफ गति करती हुई, मध्य के विभिन्न चक्र केंद्रों को भेदती हुई सिर के शीर्षस्थान पर यानि सहस्रार चक्र तक पहुँचती है!

हर चक्र का एक अपना दिव्य प्रकाश पुञ्ज होता है! जो हर गहरी श्वास की गति के साथ,
1)मूलाधार चक्र में रक्तवर्णी
2)स्वाधिष्ठान चक्र में सिन्दूरीवर्ण
3)मणिपूर चक्र में पीतवर्ण
4)अनाहत चक्र में हरितवर्ण
5)विशुद्ध चक्र में हरित-नील (फिरोजी-वर्ण)
6)आज्ञा चक्र में नीलवर्ण व
7)सहस्रार चक्र में बैंगनी वर्ण का आलोक फैलाकर मनुष्य की दिव्य चेतना को समृद्धि करता है!

🙏🙏🙏

Monday, 17 July 2023

क्या है आध्यात्मिकता

क्या है आध्यात्मिकता
लोग आध्यात्मिकता को जीवन-विरोधी या जीवन से पलायन मानते है। लोगों में भ्रामक धारणा है कि आध्यात्मिक जीवन में आनंद लेना वर्जित है और कष्ट झेलना जरूरी है। जबकि सच्चाई यह है कि आध्यात्मिक होने के लिए आपके बाहरी जीवन से कोई लेना-देना नहीं है।
लोग आध्यात्मिकता को जीवन-विरोधी या जीवन से पलायन मानते है। लोगों में भ्रामक धारणा है कि आध्यात्मिक जीवन में आनंद लेना वर्जित है और कष्ट झेलना जरूरी है। जबकि सच्चाई यह है कि आध्यात्मिक होने के लिए आपके बाहरी जीवन से कोई लेना-देना नहीं है।

आध्यात्मिकता का किसी धर्म, संप्रदाय या मत से कोई संबंध नहीं है। आप अपने अंदर से कैसे हैं, आध्यात्मिकता इसके बारे में है। आध्यात्मिक होने का मतलब है, भौतिकता से परे जीवन का अनुभव कर पाना। अगर आप सृष्टि के सभी प्राणियों में भी उसी परम-सत्ता के अंश को देखते हैं, जो आपमें है, तो आप आध्यात्मिक हैं। अगर आपको बोध है कि आपके दुख, आपके क्रोध, आपके क्लेश के लिए कोई और जिम्मेदार नहीं है, बल्कि आप खुद इनके निर्माता हैं, तो आप आध्यात्मिक मार्ग पर हैं। आप जो भी कार्य करते हैं, अगर उसमें सभी की भलाई निहित है, तो आप आध्यात्मिक हैं। अगर आप अपने अहंकार, क्रोध, नाराजगी, लालच, ईष्र्या और पूर्वाग्रहों को गला चुके हैं, तो आप आध्यात्मिक हैं। बाहरी परिस्थितियां चाहे जैसी हों, उनके बावजूद भी अगर आप अपने अंदर से हमेशा प्रसन्न और आनंद में रहते हैं, तो आप आध्यात्मिक हैं। अगर आपको इस सृष्टि की विशालता के सामने खुद की स्थिति का एहसास बना रहता है तो आप आध्यात्मिक हैं। आपके अंदर अगर सृष्टि के सभी प्राणियों के लिए करुणा फूट रही है, तो आप आध्यात्मिक हैं।

आध्यात्मिक होने का अर्थ है कि आप अपने अनुभव के धरातल पर जानते हैं कि मैं स्वयं ही अपने आनंद का स्रोत हूं। आध्यात्मिकता मंदिर, मस्जिद या चर्च में नहीं, बल्कि आपके अंदर ही घटित हो सकती है। यह अपने अंदर तलाशने के बारे में है। यह तो खुद के रूपांतरण के लिए है। यह उनके लिए है, जो जीवन के हर आयाम को पूरी जीवंतता के साथ जीना चाहते हैं। अस्तित्व में एकात्मकता व एकरूपता है और हर इंसान अपने आप में अनूठा है। इसे पहचानना और इसका आनंद लेना आध्यात्मिकता का सार है।

अगर आप किसी भी काम में पूरी तन्मयता से डूब जाते हैं, तो आध्यात्मिक प्रक्रिया शुरू हो जाती है, चाहे वह काम झाड़ू लगाना ही क्यों न हो। किसी भी चीज को गहराई तक जानना आध्यात्मिकता है।

अध्यात्म का अर्थ है अपने भीतर के चेतन तत्त्व को जानना। गीता के आठवें अध्याय में अपने स्वरुप अर्थात् जीवात्मा को अध्यात्म कहा गया है 'परमं स्वभावोऽध्यात्मुच्यते'। आज के समय में योग, प्राणायाम और ध्यान को ही अध्यात्म समझा जाता है। परन्तु इसे जानने के लिए ये केवल साधन मात्र हैं। 🙏🙏

🙏राधे-राधे 🙏

Sunday, 16 July 2023

चौकी बांधना क्या होता है?

चौकी बांधना क्या होता है?
कैसे बांधें किसी की चौकी?

चौकी बांधना, यह शब्द बहुत सुनने में आया है। क्या होता है चौकी बांधना और क्या यह सही है? हालांकि इसे अंधविश्वास माना जाता है। आपने पुलिस चौकी शब्द तो सुना ही होगा। बस इसी तरह से चौकी बांधना का अर्थ होता है किसी जगह, धन, खजाने आदि की रक्षा करना। यहां दी जा रही जानकारी समाज में प्रचलित मान्यता के आधार पर है। पाठक अपने विवेक से काम लें।
मान्यता अनुसार कहा जाता है कि अक्सर ये काम बंजारे, गडरिये या आदिवासी लोग करते हैं। वे अपने किसी जानवर या बच्चे की रक्षा करने के लिए चौकी बांध देते हैं। जैसे गडरिये अपने बच्चे को किसी पेड़ की छांव में लेटा देते हैं और उसके आसपास छड़ी से एक गोल लकीर खींच देते हैं। फिर कुछ मंत्र बुदबुदाकर चौकी बांध देते हैं। ऐसा कहा जाता है कि उनके इस प्रयोग से उक्त गोले में कोई भी बिच्छू, जानवर या कोई बुरी नियत का व्यक्ति प्रवेश नहीं कर पाता है।
 
 
उल्लेखनीय है कि यही प्रयोग लक्ष्मण ने सीता माता की सुरक्षा के लिए किया था जिसे आज 'लक्ष्मण रेखा' कहा जाता है। हालांकि रामायण में इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता है।

ऐसा भी कहा जाता है कि चौकी बांधने का प्रयोग कई राजा महाराजा अपने खजाने की रक्षा के लिए भी करते रहे हैं। कहते हैं कि आज भी उनका खजाना इसी कारण से सुरक्षित भी है। रावण ने तो अपने संपूर्ण महल की चौकी बांध रखी थी। आधुनिक युग में पद्मनाभस्वामी मंदिर के खजाने के संबंध में कहा जाता है कि वहां के अंतिम दरवाजे पर विशेष मंत्रों से चौकी बांध रखी है। कुछ लोग इसे तहखाना 'बी' कहते हैं।
 कहते हैं कि आज भी कई गढ़े खजाने की चौकी बंधी हुई है। हालांकि यह भी कहा जाता है कि चौकी सिर्फ खजाने की ही नहीं बांधी जाती है बल्कि किसी व्यक्ति की, उसके घर की या उस व्यक्ति से संबंधित किसी भी वस्तु की भी बांधी जाती है। चौकी बांधने के मकसद अलग अलग होते हैं।

कैसे बांधते हैं चौकी : चौकी बांधने के कई तरीके होते हैं। चौकी किसी देवी या देवता की बांधी जाती है या नाग महाराज की चौकी भी बांधी जाती है। चौकी भैरव और दस महाविद्याओं की भी बांधी जाती है। कुछ लोग भूत-प्रेत की चौक बांधते हैं तो कुछ नगर देवता की।
 
 
माना जाता है कि बंजारा, आदिवासी, पिंडारी समाज अपने धन को जमीन में गाड़ने के बाद उस जमीन के आस-पास तंत्र-मंत्र द्वारा 'नाग की चौकी' या 'भूत की चौकी' बिठा देते थे जिससे कि कोई भी उक्त धन को खोदकर प्राप्त नहीं कर पाता था। जिस किसी को उनके खजाने के पता चल जाता और वह उसे चोरी करने का प्रयास करता तो उसका सामना नाग या भूत से होता था। हालांकि इन बातों में कितनी सचाई है यह हम नहीं जानते लेकिन ऐसी बातें समाज में प्रचलित है।


- मनोज कुमार

सकाम साधना - प्रसन्न कुळकर्णी

 सकाम साधना 


साधना साधारणपणे दोन वर्गात विभागली जाते. एक म्हणजे निष्काम साधना आणि दुसरी सकाम साधना. निष्काम साधना म्हणजे कोणतीही मागणी, विचार, अडचण इ. डोक्यात न ठेवता केलेली साधना तर सकाम साधना म्हणजे विशिष्ट हेतू साठी केलेली साधना.. आज आपण सकाम साधने वर बोलू. 

सकाम साधना करताना विशिष्ट संकल्प घेऊन आपण ती करत असतो म्हणजे काय तर आपली एखादी अडचण सुटावी म्हणून आपण साधना दैवतला विनंती करत असतो. तर ही साधना करताना काही गोष्टी आपण पाळायला हव्यात. ही साधना सर्वप्रथम समजून घेणे अत्यंत गरजेचे आहे. त्याचा योग्य विधी आणि त्याचे परिणाम सुद्धा समजून घेणे गरजेचे आहे. फलप्राप्ती होण्यासाठी साधना करायला दिलेली वेळ, नैवेद्य इ. अनेक गोष्टींची काळजी घेणे गरजेचे आहे. त्या साधने आधी दिलेले न्यास सुद्धा करणे गरजेचे आहे आणि त्यासोबतच त्या दैवताला बोलवण्याआधी कोणत्या कोणत्या दैवतांना आवाज द्यायचा असतो तेपण समजुन घेणे गरजेचं आहे. या सर्व गोष्टी प्रामुख्याने पाळल्या गेल्या तर आपल्याला अपेक्षित फलप्राप्ती लवकर होते. साधना कोणतीही असो मंत्रचा उच्चार योग्यच असावा. 


या सर्व गोष्टींच्या व्यतिरिक्त एक सर्वात महत्वाची गोष्ट म्हणजे आपण त्या दैवताला संकल्पात आपलं काम सांगितलेलं असत तर ते काम कोणत्या प्रकारे ते दैवत करत यावर त्या दैवताला आपण मार्गदर्शन करायची काहीच गरज नाही. आपल काम फक्त योग्य संकल्प घेणे व साधना योग्य प्रकारे करणे एवढच आहे. त्याच्या फलप्राप्तीचे नियोजन साधना दैवत स्वतःहून करते. त्यात कोणत्या पद्धतीने फलप्राप्ती व्हावी हा आपल्या विचारांचा मुद्दा होऊच नाही शकत.

उदाहरण द्यायचं झालं तर पैसा मिळावा म्हणून समजा एखादी साधना केली तर तो कोणत्या स्वरूपातून मिळावा यावर आपण विचार करू नये. साधना दैवतने अपेक्षित असलेला संकल्प केलेला पैसा हा कोणाच्याही माध्यमातून पाठवला तरी त्याचा स्वीकार करावा. त्यात अमुक मार्गानेच पैसा यावा असा विचार करू नये. 

सकाम साधना ही गुरू मार्गदर्शनाच्या आधारावरच सुरू करावी आणि थांबवावी. 


प्रसन्न कुळकर्णी

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