उत्तर: बहुत अच्छा प्रश्न हे, यह. आजकल बहुत सारे लोग इसी समस्याओं से परेशान हे. भाग्यबंधन होना यानी इश्वर की और या प्रकृति के और से जो सहज लाभ इंसान को मिलने चाहिए वह लाभ मिलना बंद हो जाना. जो opportunities, जो सफ़लता, जो सन्मान, जो स्वास्थ्य और जो प्रेम सरल तरीके से मिलने चाहिए वह सब खूब मेहनत करने के बाद भी प्राप्त नहीं होना. यह सब भाग्य बंधन कहा जाता हे. इसी भाग्य बंधन को ज्योतिष लोग ग्रह दोष कहते हे, तांत्रिक लोग पितृ दोष और प्रेत बाधा कहते हे, वास्तु शास्त्री इसे वास्तु दोष और पंडित लोग इसे महा दशा का नाम देते हे. जब कि यह भाग्य बंधन ही हे, जो मनुष्य को उसके खुद के ही कर्मों के कारण प्राप्त होता हे, ज्यादातर लोग भाग्य बंधन का शिकार 30 साल के बाद होते हे उन्हें अपने 30 वर्ष का आचरण, विचरण और विचारों पर समीक्षा करनी चाहिए, उसी में से उन्हें अपने भाग्य बंधन के कर्म मिल जाएंगे. किन्तु जिनका भाग्य बंधन जन्म के साथ ही शुरू हो जाता हे, वे अपने पूर्ण जन्म के कर्म फल का ही परिणाम होता हे.
देखिए इश्वर किसी के भी पाप और पुण्य को स्वीकार नहीं करते हे. किसी के कर्म पर इश्वर का अधिकार नहीं और ना उसके कर्म फल पर इश्वर का अधिपत्य. इसलिए इश्वर के पास भी किसी के भाग्य को खोलने या बंधन का अधिकार नहीं फिर तांत्रिकों की क्या स्थिति है इस से आप सभी वाकिफ हे. फिर भी कुछ केस में ऐसा देखा गया हे कि किसी तांत्रिक ने अपने शक्ति सामर्थ्य से किसी के भाग्य को बाँध लिए. देखिए वास्तव मे ऐसा नहीं होता. जब पाप कर्म मनुष्य को दुख फल देने के लिए प्रवृत्त होता हे तो उसे भी किसी ना किसी माध्यम के द्वारा ही देना होता हे. ऐसे समय में जो तांत्रिक कुछ भी नहीं जानता वह भी कुछ विधि से पीड़ित व्यक्ती के भाग्य को बांधने का निर्मित बन जाता हे, इसी प्रकार जब पुण्य फल सुख देने वाला होता हे तब भी किसी भी ज्योतिष, पंडित या अन्य मार्गदर्शक को ही माध्यम बनाकर उन्हें उसका निर्मित बनाता हे. यह सीधा प्रोसेस हे.
कर्म पर सिर्फ और सिर्फ इंसान का खुद का ही अधिकार हे, इसलिए उस से प्राप्त होने वाले फल पर भी उसी kw अधिकार. इसमे किसी की नहीं चलती, इश्वर की भी नहीं. अहिल्या का भी जब बुरे कर्म का समय सीमा समाप्त हुआ तभी उसे श्री राम के चरण स्पर्श का लाभ मिला, इसी प्रकार केवट, शबरी, हनुमानजी, सुग्रीव, विभीषण सभी को प्रभु की कृपा उनके पुण्य फल के उदय के समय प्राप्त हुई.
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