Sunday, 22 April 2018

Aatma Parichay (आत्मा परिचय)

आत्मा परिचय क्या है ?



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गीता के दूसरे अध्याय में आत्मा का वर्णन है। सृष्टि, आत्मा और प्रकृति के मिलन से बनी है। आत्मा अपरिवर्तनशील, सर्वव्यापी, अजन्मा, अव्यक्त और विकार रहित है, लेकिन प्रकृति विकारवाली और परिवर्तनशील है। इस संसार में हमें, जो भी बदलाव दिखाई देता है, वह प्रकृति में होता है, आत्मा में नहीं। हां, ये बदलाव आत्मा के आधार से होता है। प्रकृति के पांच तत्व हैं : पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। 
ये पांचों तत्व संसार की हर वस्तु में मौजूद हैं। प्रकृति में बदलाव इन्हीं पांच तत्वों व तीन गुणों सत्व, रज और तम की वजह से होता है। गीता में जब कहा है कि आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकता, तो काटना तो पृथ्वी तत्व में होता है, जलना अग्नि तत्व से होता है, गलना जल तत्व से और सूखना वायु तत्व से होता है। ये सभी खूबियां चारों तत्वों की हैं और पांचवां तत्व आकाश है, जिसे खाली स्थान कहते हैं। बाकी चार तत्व आकाश तत्व के आधार पर ही काम करते हैं। आत्मा तो पांचों तत्वों से परे है। तो कटना, जलना, गलना व सूखना ये सब प्रकृति से बने शरीर या दूसरी वस्तुओं में ही संभव है, आत्मा में नहीं। विज्ञान में इन पांचों तत्वों का शोध होता है, लेकिन अध्यात्म आत्म तत्व को अनुभव करने की प्रक्रिया है, इसलिए जहां विज्ञान समाप्त होता है, वहां से अध्यात्म शुरू होता है। 
क्या होता है जब आत्मा शरीर को छोड़ती है
गरूड़ पुराण कहता है कि जब आत्मा शरीर छोड़ती है तो उसे दो यमदूत लेने आते हैं। जैसे हमारे कर्म होते हैं उसी तरह वो हमें ले जाते हैं। अगर मरने वाला सज्जन है, पुण्यात्मा है तो उसके प्राण निकलने में कोई पीड़ा नहीं होती है लेकिन अगर वो दुराचारी या पापी हो तो उसे बहुत तरह से पीड़ा सहनी पड़ती है। पुण्यात्मा को सम्मान से और दुरात्मा को दंड देते हुए ले जाया जाता है। गरूड़ पुराण में यह उल्लेख भी मिलता है कि मृत्यु के बाद आत्मा को यमदूत केवल 24 घंटों के लिए ही ले जाते हैं।
इन 24 घंटों में उसे पूरे जन्म की घटनाओं में ले जाया जाता है। उसे दिखाया जाता है कि उसने कितने पाप और कितने पुण्य किए हैं। इसके बाद आत्मा को फिर उसी घर में छोड़ दिया जाता है जहां उसने शरीर का त्याग किया था। इसके बाद 13 दिन के उत्तर कार्यों तक वह वहीं रहता है। 13 दिन बाद वह फिर यमलोक की यात्रा करता है। 
आत्मा की गतियां
वेदों, गरूड़ पुराण और कुछ उपनिषदों के अनुसार मृत्यु के बाद आत्मा की आठ तरह की दशा होती है, जिसे गति भी कहते हैं। इसे मूलत: दो भागों में बांटा जाता है पहला अगति और दूसरा गति। अगति में व्यक्ति को मोक्ष नहीं मिलता है उसे फिर से जन्म लेना पड़ता है। गति में जीव को किसी लोक में जाना पड़ता है।
अगति के चार प्रकार हैं क्षिणोदर्क, भूमोदर्क, तृतीय अगति और चतुर्थ अगति। क्षिणोदर्क अगति में जीव पुन: पुण्यात्मा के रूप में मृत्यु लोक में आता है और संतों सा जीवन जीता है, भूमोदर्क में वह सुखी और ऐश्वर्यशाली जीवन पाता है, तृतीय अगति में नीच या पशु जीवन और चतुर्थ गति में वह कीट, कीड़ों जैसा जीवन पाता है। वहीं गति के अंतर्गत चार लोक दिए गए हैं और जीव अपने कर्मों के अनुसार गति के चार लोकों ब्रह्मलोक, देवलोक, पितृ लोक और नर्क लोक में स्थान पाता है 
आत्मा का मार्ग
आत्मा की यात्रा का मार्ग पुराणों में आत्मा की यात्रा के तीन मार्ग माने गए हैं। जब भी कोई मनुष्य मरता है और आत्मा शरीर को त्याग कर उत्तर कार्यों के बाद यात्रा प्रारंभ करती है तो उसे तीन मार्ग मिलते हैं। उसके कर्मों के अनुसार उसे कोई एक मार्ग यात्रा के लिए दिया जाता है।
ये तीन मार्ग है अर्चि मार्ग, धूम मार्ग और उत्पत्ति-विनाश मार्ग। अर्चि मार्ग ब्रह्मलोक और देवलोक की यात्रा के लिए है। धूममार्ग पितृलोक की यात्रा के लिए है और उत्पत्ति-विनाश मार्ग नर्क की यात्रा के लिए है। 
कितने तरह के होते हैं नर्क
मुख्य नरक 36 हैं। उनमें भी अवीचि, कुम्भीपाक और महारौरव ये तीन मुख्यतम हैं। ये तीनों नरक समस्त नरकों या नरक लोक के अध: मध्य और ऊध्र्व भाग में स्थित हैं। 36 नरकों में से एक-एक के चार-चार उप नरक हैं। 
आत्मा का अस्तित्व क्या है
पिता बच्चे के लिए खिलौने लेकर आते हैं और बच्चा उन खिलौनों से खेलने में मग्न हो जाता है और पिता उसे बार बार आवाज देते हैं मगर वो खिलौने के साथ इतना मग्न हो जाता है कि पिता की आवाज सुन कर भी उस आवाज को अनसुना कर देता है। वो यह भी भूल जाता है कि वो जिस खिलौने के साथ खेल रहा है वो पिता ने ही उसे लाकर दिया है। 
इसी प्रकार इस संसार की प्राप्तियां जिसकी बदौलत हैं इन्सान उसी तरफ अपने कदम नहीं बढ़ाता। यह जो मानव जीवन मिला है इसे संसार तक सिमित रहकर ही नहीं बिता देना है। इस सत्य की जानकारी करके इस जीवन की यात्रा को तय करना है। इस मूल तत्व का बोध हो जाने के कारण ये पहचान हो गई कि मेरा अस्तित्व क्या है 
मैं केवल शरीर नहीं हूं, मैं तो आत्मा हूं जो एक परमात्मा की अंश है। परमात्मा न हिंदू है, न मुस्लिम है, न सिख, न ईसाई है न ही यहुदी है। परमात्मा से सारा संसार उपजा है जड़ चेतन, दृश्य अदृश्य जिसकी बदौलत हैं इसी की मैं अंश हूं। जिस प्रकार बादलों के छा जानें से पर्वतों की खूबसूरती नजर नहीं आती इसी प्रकार यह अज्ञानता के गुब्बारे के परे हमें हकीकत और सच्चाई दिखाई नहीं देती। 
आत्मा एक ऐसी जीवन-शक्‍ति है जिसके बल पर हमारा शरीर ज़िंदा रहता है। यह एक शक्ति है, कोई व्यक्ति नहीं। इस जीवन-शक्ति के बिना हमारे प्राण छूट जाते हैं और हम मिट्टी में फिर मिल जाते हैं। जब शरीर से आत्मा या जीवन-शक्ति निकलती है, तो शरीर मर जाता है और वहीं लौट जाता है जहां से वह निकला था यानी मिट्टी में। उसी तरह जीवन-शक्ति भी वहीं लौट जाती है जहां से वह आयी थी परमात्मा के पास। 


किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए इस नंबर पर फ़ोन करें :   
 शंकरनाथ - 9420675133  
   नंदेशनाथ - 8087899308

8 comments:

  1. Far Chan aani wegle kahi tari wachayla milale, Dhanyawad, shankernathji, Nandeshnathji.

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  2. बहोत अच्छी जानकारी है.

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  3. yah ek anokha blog page hai .. bahut dhanyavaad acchis aadhnaayen evam purn vidhi se dee hai .. fir bhi inko karne ke pahle aapse baat akrke aagya lekar hee karna uchit hai

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