भगवान विष्णु के 10 अवतारों में से एक भगवान वराह का अवतार है जिन्हें विष्णु के अवतारों में तीसरा माना जाता है। पद्मपुराण में बताया गया है कि वरूथिनी एकादशी के दिन भगवान के वराह अवतार की पूजा की जानी चाहिए। इस वर्ष 30 अप्रैल को वरूथिनी एकादशी है। इसे वरूथिनी ग्यारस भी कहा जाता है। इस एकादशी के दिन भगवान वराह के अवतार की कथा पढना और सुनना भी शुभ और पुण्यदायक माना गया है।
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Monday, 10 January 2022
वराह का अवतार
द्वारपालों के शाप की है गाथा
पौराणिक कथा के अनुसार, बैकुंठ लोक के द्वारपाल जय और विजय ने बैकुंठ लोक जाते हुए सप्त ऋषियों को द्वार पर रोका था जिस कारण उन्हें शाप मिला कि दोनों को तीन जन्मों तक पृथ्वी पर दैत्य बनकर रहना पड़ेगा। पहले जन्म में दोनों ने कश्यप और दिति के पुत्रों के रूप में जन्म लिया और हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष कहलाए। दोनों ने पृथ्वीवासियों को परेशान करना शुरू कर दिया। धरती पर हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष का अत्याचार बढ़ता जा रहा था। हिरण्याक्ष ने यज्ञ आदि कर्म करने पर लोगों को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया।
ऐसे प्रकट हुए भगवान वराह
हिरण्याक्ष एक दिन घूमते हुए वरुण की नगरी में जा पहुंचा। पाताल लोक में जाकर हिरण्याक्ष ने वरुण देव को युद्ध के लिए ललकारा। वरुण देव बोले कि ‘अब मुझमें लड़ने का चाव नहीं रहा है तुम जैसे बलशाली वीर से लड़ने के योग्य अब मैं नहीं हूं तुम्हें विष्णु जी से युद्ध करना चाहिए।’ तब देवतओं ने ब्रह्माजी और विष्णुजी से हिरण्याक्ष से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए नासिका से वराह नारायण को जन्म दिया। इस तरह हरि के वराह अवतार का जन्म हुआ।
वराह अवतार ने किया दानव का अंत
वरुणदेव की बात सुनकर हिरण्याक्ष ने देवर्षि नारद से नारायण का पता पूछा। देवर्षि नारद ने उन्हें बताया कि नारायण इस समय वराह का रूप धारण करके पृथ्वी को समुद्र से निकालने के लिए गए हुए हैं। हिरण्याक्ष तुरंत उसी स्थान के लिए प्रस्थान कर गया क्योंकि उसी ने ही पृथ्वी को समुद्र में रखा था। पहुंचने पर हिरण्याक्ष ने देखा कि भगवान हरि वराह अवतार में पृथ्वी को ले जा रहे हैं। हिरण्याक्ष ने भगवान वराह को युद्ध के लिए ललकारा और महायुद्ध आरंभ हो गया। भगवान विष्णु ने अपने दांतों और जबड़ों से हिरण्याक्ष का पेट फाड़ दिया और पृथ्वी को फिर से अपने स्थान पर स्थापित कर दिया।
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