Monday, 10 January 2022

प्रतिकूल ग्रहों को अनुकूल बनाने के उपाय - अनिल सुधांशु

 

सूर्य :---- सूर्य की प्रतिकूलता दूर करने के लिए रविवार का उपवास रखें। भोजन नमक रहित करें। रविवार को सायंकाल सूर्य संबंधी वस्तुओं-गुड़, गेहूं या तांबे का दान करें। अगर चाहें तो गाय या बछड़े को गुड़-गेहूं खिलाएं। अपने पिताजी की सेवा करें। यह नहीं कर सकें तो प्रतिदिन सूर्य नमस्कार करें।

चंद्रमा :-----अगर जन्मपत्रिका में चंद्रमा प्रतिकूल चल रहा हो तो सोमवार का उपवास प्रारंभ कर दें। अपनी मां की सेवा करें। सोमवार की शाम किसी युवती को शंख, सफेद वस्त्र, दूध, चावल व चांदी का दान करें। सफेद गाय को सोमवार को सना हुआ आटा खिलाएं या पके हुए चावल में खांड मिलाकर कौओं को खिलाएं। चंद्रमा अगर अशुभ हो तो दूध का प्रयोग न करें।

मंगल : ----मांगलिक कुंडलियों में दो प्रकार के उपाय मिलते हैं: पहला स्वयं की मांगलिक जन्मपत्रिका में शुभ ग्रहों का केन्द्र में होना, शुक्र द्वितीय भाव में, गुरु मंगल साथ में हों या मंगल पर गुरु की दृष्टि से मांगलिक दोष का परिहार हो जाता है।

दूसरे वर-कन्या की जन्मपत्रिका में आपस में मांगलिक दोष की काट-एक के मांगलिक स्थान में मंगल हो और दूसरे के इन्हीं स्थानों में सूर्य, शनि, राहू, केतु में से कोई एक ग्रह हो तो दोष नष्ट हो जाता है।

ज्योतिष का सिद्धांत है कि पूर्ववर्ती कारिका से बाद वाली कारिका बलवान होती है। मांगलिक दोष के विषय में परवर्ती कारिका ही परिहार है। अत: मांगलिक विचार का निर्णय सूक्ष्मता से करें तथा परिहार मिलता हो तो विवाह संबंध तय करें।

जिस वर या कन्या की जन्मपत्रिका में लग्न से या चंद्र लग्न से तथा वर के शुक्र से ही मांगलिक स्थान 1, 4, 7, 8, 12 भावों में मंगल हो तो ऐसी जन्मपत्रिका मांगलिक कहलाती है। अगर कन्या की पत्रिका में मांगलिक भावों में मंगल हो और वर के उपरोक्त भवनों में मंगल के बदले शनि, सूर्य, राहू-केतु हो तो मंगल का दोष स्वयं ही दूर हो जाता है। पापक्रांत शुक्र तथा सप्तम भावपति की नेष्ट स्थिति को भी मंगलतुल्य ही समझें।

मंगल दोष परिहार के कुछ शास्त्र वचन निम्र प्रकार हैं- इनका अगर किन्हीं पत्रिकाओं में परिहार हो रहा हो तो मांगलिक दोष भंग हो जाता है। जातक का दाम्पत्य जीवन सुख एवं प्रसन्नतापूर्वक व्यतीत होता है।

मंगल की प्रतिकूलता से सुरक्षा के लिए मंगलवार का उपवास रखें। अपने छोटे भाई-बहन का विशेष ध्यान रखें। मंगल की वस्तुएं-लाल कपड़ा, गुड़, मसूर की दाल, स्वर्ण, तांबा, तंदूर पर बनी मीठी रोटी का दान करते रहें। आवेश पर सदैव नियंत्रण रखने का प्रयास करें। हिंसक कार्यों से दूर रहें। बहते जल में गुड़ की रेवड़ियां बहाना भी एक अच्छा उपाय है।

बुध :---- बुध दोष निवारणार्थ बुधवार का उपवास करें। इस दिन उबले हुए मूंग गरीब व्यक्ति को खिलाएं। गणेश जी की पूजा दूर्वा से करें। हरे वस्त्र, मूंग की दाल का दान बुधवार मध्याह्न करें। बुध के दोष दूर करने के लिए अपने भार के बराबर हरी घास गायों को खिलाएं। बहन-बेटियों का सदैव सम्मान करें। तांबे का सिक्का छेद करके बहते पानी में प्रवाहित करें।

बृहस्पति :---- देवगुरु बृहस्पति अगर दशावश या गोचरवश प्रतिकूल परिणाम दे रहे हों, तो गुरुवार का उपवास करें। केले की पूजा, पीपल में जल चढ़ाना, गुरुजनों व विद्वान व्यक्तियों का सम्मान करने से भी गुरु की अशुभता दूर होती है।

शुक्र :--- शुक्र की प्रतिकूलता दूर करने के लिए शुक्रवार का उपवास किसी शुक्ल पक्ष से प्रारंभ करें। फैशन संबंधी वस्तुओं, इत्र, फुलैल, डियोडरैंट इत्यादि का प्रयोग न करें। रेशमी वस्त्र, इत्र, चीनी, देसी कर्पूर, चंदन, सुगंधित तेल इत्यादि का दान किसी ब्राह्मण
युवती को दें।

शनि :---- शनि के नाम से ही लोग भयभीत हो जाते हैं। पौराणिक कथाओं में भी शनि ग्रह का प्रभाव अनेक राजा-महाराजाओं पर मिलता है, जबकि वास्तविकता यह है कि सभी की सेवा चाकरी और सदैव आज्ञा पालन करने के लिए बैठा रहने वाला एकमात्र गृह यही है। यह जातक को उसके कर्मों के अनुसार दंड या वैभव प्रदान करता है।

सूर्य की पत्नी का नाम संज्ञा है। इन्हीं की प्रतिछाया से शनि का जन्म हुआ। भगवान शिव ने शनि को कर्मानुसार दंड प्रदान करने का अधिकार दिया।

शनि की गति अत्यंत धीमी है। आकाश के गोलक पर यह ग्रह बहुत धीमी गति से चलता है। इसलिए इसे शनैश्चर नाम दिया था-‘शनै: शनै: चरत इति शनिश्चर।’ बाद में इसी शनिश्चर का अपभ्रंश शनिचर बन गया। यह धीमी गति से क्यों चलते हैं। इसका कारण इनका ‘लंगड़ा’  होना भी है।

शनि 12 राशियों में से 6 राशियों को प्रभावित करता है। शनि की महादशा 19 वर्ष की होती है। जिस राशि में शनि होता है उस राशि से पहले की और अगली राशि वाले साढ़ेसाती से प्रभावित होते हैं। इस प्रकार अपनी राशि से शनि चतुर्थ एवं अष्टम होने पर शनि की ढैया कहलाती है। यह मार्गी और वक्री होता है, साढ़ेसाती और ढैया को वृहत्कल्याणी तथा लघु कल्याणी कहा जाता है। बुध, शुक्र, राहू, केतु, शनि से नैसर्गिक मित्र राशि है और गुरु बृहस्पति सम तथा सूर्य मंगल तथा चंद्रमा से शत्रु भाव रखता है।

शनि को काल पुरुष का दुख माना गया है। यह दुख और आधि-व्याधि के कारक हैं। ग्रहों में इन्हें सेवक का पद प्राप्त है। एक राशि से दूसरी राशि भ्रमण में शनि को 30 माह का समय लगता है। तीस वर्ष में यह सम्पूर्ण राशि चक्र का भ्रमण पूर्ण करते हैं। मकर और कुंभ राशि की स्वयं की राशियां हैं। मेष में शनि नीच का तथा तुला राशि में उच्च का होता है। शनि की पूर्ण दृष्टि तीसरी, सातवीं और दसवीं होती है।

शनि ग्रह के शमन के लिए कच्ची घानी के सरसों के तेल में अपना प्रतिबिम्ब देखें और उसे दान कर दें। बदन पर सरसों के तेल की मालिश करें।

शनि राहू-केतु मुख्यतया जप-तप की बजाय दान-दक्षिणा से अधिक प्रसन्न होते हैं। इनके द्वारा प्रदत्त दोष निवारणार्थ शनिवार का उपवास रखें। सुबह पीपल को जल से सीचें व सायंकाल शुद्ध देसी घी का दीपक जलाएं। काले वस्त्र व काली उड़द, लौह, तिल, सरसों का तेल, गाय आदि का दान करें।

राहू के लिए :--- तुला का दान दें या कच्चा कोयला दरिया में बहाएं।

केतु के लिए : ---- कुत्ते को रोटी खिलाएं।

नोट : ज्योतिष के उपाय किसी योग्य विद्वान ज्योतिषी का परामर्श लेकर एवं उपाय करने की पूर्ण विधि जानकर ही करें। सभी उपाय दिन के समय ही करें।
अनिल सुधांशु
ज्योतिषाचार्य 94580 64249

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