ऊँ जय गोरक्ष देवा, श्री स्वामी जय गोरक्ष देवा।सुर-नर मुनि जन ध्यावें, सन्त करत सेवा॥
ऊँ गुरुजी योगयुक्ति कर जानत, मानत ब्रह्म ज्ञानी।सिद्ध शिरोमणि राजत, गोरक्ष गुणखानी ॥1॥
जय ऊँ गुरुजी ज्ञान ध्यान के धारी, सब के हितका...री।गो इन्द्रिन के स्वामी, राखत सुध सारी ॥2॥
जय ऊँ गुरुजी रमते राम सकल, युग मांही छाया है नाहीं।घट-घट गोरक्ष व्यापक, सो लख घट माहीं ॥3॥
जय ऊँ गुरुजी भष्मी लसत शरीरा,रजनी है संगी।योग विचारक जानत, योगी बहु रंगी ॥4॥
जय ऊँ गुरुजी कण्ठ विराजत सींगी-सेली, जत मत सुख मेली।भगवाँ कन्था सोहत, ज्ञान रतन थैली ॥5॥
जय ऊँ गुरुजी कानन कुण्डल राजत, साजत रविचन्दा।बाजत अनहद बाजा, भागत दुख-द्वन्द्वा ॥6॥
जय ऊँ गुरुजी निद्रा मारो,काल संहारो, संकट के बैरी।करो कृपा सन्तन पर, शरणागत थारी ॥7॥
जय ऊँ गुरुजी ऐसी गोरक्ष आरती, निशदिन जो गावै।वरणै राजा 'रामचन्द्र योगी', सुख सम्पत्ति पावै ॥8॥
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